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बंद हुई काड़ा बलि प्रथा, भेड़ा बलि पर माने ग्रामीण

बड़कागांव : प्रखंड मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर सिकरी गांव में वर्षो से जारी काड़ा बलि प्रथा पर विराम

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Jul 2017 10:35 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jul 2017 10:35 PM (IST)
बंद हुई काड़ा बलि प्रथा, भेड़ा बलि पर माने ग्रामीण
बंद हुई काड़ा बलि प्रथा, भेड़ा बलि पर माने ग्रामीण

बड़कागांव : प्रखंड मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर सिकरी गांव में वर्षो से जारी काड़ा बलि प्रथा पर विराम लग गया। बलि प्रथा को लेकर ग्रामीणों की पिछले दिनों हुई बैठक में काड़ा बलि के बदले भेड़ा बलि देने का फैसला लिया गया। हालांकि कुछ ग्रामीणों का कहना है कि धीरे-धीरे इस प्रथा को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा। ज्ञात हो कि गांव में यह परंपरा थी कि आषाढ़ माह में किसान खेतों फसलों की बोआई के पहले एक वर्ष काड़ा और दूसरे वर्ष भेड़ा की बलि दी जाती है। इसके बाद ही किसान धान की रोपने शुरू करते हैं। इस प्रथा पर विराम लगाते हुए हुए इवर्ष ग्रामीणों ने काड़ा बलि न देकर भेड़ बलि ही दी। इससे पहले पुजारी घनु भुइयां दिन भर अनुष्ठान करते रहे। नए पहन पुजारी त्रिवेणी महतो ने पूजा-अर्चना में सहयोग किया। पहले पूजा जूठन महतो करते थे उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र त्रिवेणी महतो को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। काड़ा बलि बंद कर केवल भेड बलि पर सहमति पर पुरोहित कैलाश पांडेय, रामस्वरूप ¨सह, विनोद महतो, चंद्रनाथ महतो, जीवन महतो, जगन्नाथ महतो, जादूर महतो, नरेश महतो, गिरधारी महतो, अरुण कुमार गुप्ता, सुनील पासवान, तलेश्वर कुमार महतो, नरायण महतो, सूबेदार राम, बंसी राम, गणपति राम, हेमन राम, झुंबर महतो का पूरा सहयोग रहा।


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