शहरनामा ...
चर्चा जारी है उतर गई लालबत्ती शहर में चर्चा है। बत्ती गुल हो गयी। चौंकिए मत, बत्ती गुल हुई है, ब
चर्चा जारी है उतर गई लालबत्ती
शहर में चर्चा है। बत्ती गुल हो गयी। चौंकिए मत, बत्ती गुल हुई है, बिजली नहीं। इस बार सिर्फ शहर में ही नहीं, पूरे देश की बत्ती गुल हुई है। बल्कि यूं कहें कि लाल बत्ती उत्तर गयी है। लाल बत्ती यानि रेड लाईट जो सरकारी वाहनों पर चक्करघिनी काटते हुए आम लोगों को वीआइपी होने का एहसास कराती रही है। मुल्क के बादशाह का फरमान आया कि सरकारी वाहनों पर लगी लाल, पीली बत्तियां, 1 मई से उतर जाएंगी। इस प्रचलन से सामंतवादी सोच को बल मिलता है। इसके बाद जिला मुख्यालय के अफसरों ने स्वत: लाल बत्ती हटा दी। उन्हें क्या फर्क पड़ता है। वे उपायुक्त है, पुलिस अधीक्षक है, सब कुछ होते हुए लोक सेवक हैं। लेकिन परेशानी उन छदम लाल पीली बत्ती धारी अफसरों को हुआ जो इसके अधिकारी नहीं थे। महीनों पहले इस विषय पर एक पत्रकार से बहस भी हो गयी थी। मोबाइल से उस अधिकारी से संपर्क करना भी चाहा लेकिन हमेशा की तरह आदतन मोबाइल बंद था।
लाल बत्ती के धौंस का आलम यह था कि आम आदमी इसे दूर से देखकर बाएं दाएं हो जाते थे। जनप्रतिनिधियों के वंशजों की चांदी थी। लाल बत्ती की गाड़ी में बैठकर कोई भी वंशधारी चाहे किसी भी रंग का क्यों न हो, वह लाल हो जाता था।
अब क्या करेंगे वैसे लोग, बहस तो इस पर हो रही है। अब एंबुलेंस में सिर्फ रहेगी नीली लाल बत्ती, लेकिन एंबुलेंस तो विधान सभा, सचिवालय या सरकारी दफ्तरों में तो नहीं ले जाएगी। अगर उसकी सेवा की जरूरत पड़ी तो वह दो ही जगह ले जा सकती है, एक तो अस्पताल या फिर ..