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बाघों के बिना सूना पड़ा हजारीबाग का नेशनल पार्क

हजार बागों के शहर के रूप में विख्यात हजारीबाग अब अपनी गौरवमयी गरिमा को बचाने के लिए मशक्कत कर रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 07 Jul 2016 05:16 AM (IST)Updated: Thu, 07 Jul 2016 05:20 AM (IST)
बाघों के बिना सूना पड़ा हजारीबाग का नेशनल पार्क

प्रमोद, हजारीबाग। हजार बागों के शहर के रूप में विख्यात हजारीबाग अब अपनी गौरवमयी गरिमा को बचाने के लिए मशक्कत कर रहा है। बागों के इस शहर से लगभग 14 किमी दूर हजारीबाग नेशनल पार्क अवस्थित है। कुछ दशक पहले तक यह क्षेत्र बाघों के शिकार के लिए लोकप्रिय था। टीले बनाए गए थे जिसपर बकरियों को बांधा जाता था और इन बकरियों के शिकार के चक्कर में पहुंचे बाघ खुद शिकार बन जाते थे। लेकिन, अब यहां बाघ ही नहीं रहे।

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देशभर में प्रसिद्ध हजारीबाग के नेशनल पार्क को वर्तमान में सैंक्चुअरी की श्रेणी में रखा गया है। एक जमाना वह भी था जब पूरे देश के सैलानी यहां भ्रमण करने आते थे और रात में जंगली जानवरों को अपनी आंखों से देख आहलादित हुआ करते थे। लंबे समय तक प्रकृति की मनोरम छटा को निहारने के लिए भी कोलकाता, दिल्ली, लखनऊ व मुंबई से लोग यहां आते रहे। कई फिल्मी हस्तियों ने भी नेशनल पार्क में आकर सुखद अनुभूति प्राप्त की। लेकिन काल क्रम में सब कुछ बदलता चला गया। शिकारगाह के रूप में चर्चित नेशनल पार्क में बाघों की गर्जना अब सुनाई नहीं पड़ती। टीले तो हैं लेकिन बाघ खो गए। नतीजा टीले भी सूने पड़ गए। ये वही टीले हैं जहां शिकारी बड़ी ही चालाकी से बकरी बांधकर बाघों के आने की प्रतीक्षा करते थे।

रांची-पटना राजमार्ग पर अवस्थित 72 स्क्वायर मील में फैले नेशनल पार्क में रामगढ़ राज के समय में टाइगर ट्रैप बनाया गया था। लोगों का कहना है कि राजपरिवार के लोग विशेषकर राजा बहादुर कामाख्या नारायण ङ्क्षसह ने बाघों का शिकार करने के लिए टाइगर ट्रैप का निर्माण करवाया । इसके समीप बड़े गड्ढे के बीच बने टीले पर बकरी बांध दी जाती थी। टीले पर बकरी बांध गड्ढ़े को ढक दिया जाता था। बकरी की आवाज सुनते ही बाघ बकरी पर झपट पड़ता और शिकारी बाघ को आसानी से अपना निशाना बना लेता था। इसके अलावा वाच टावर का निर्माण किया गया था जहां से लोग बाघों के आरामगाह तथा अन्य जंगली जानवरों को देखते थे। आज भी टाइगर ट्रैप तथा टावर अपनी पुरानी स्मृतियों को संजोए हुए हैं।

1972 के बाद नेशनल पार्क का कद छोटा कर दिया गया। इसे वाइल्ड लाइफ सैंक्चुयरी बना दिया गया। 1982 तक वन विभाग की ओर से बंद वाहन की व्यवस्था की गई थी। शाम में यह शहर से खुलती तथा सैंक्चुअरी का परिदर्शन कराकर 8 बजे रात तक लौट आती थी। लेकिन अब सब बीते दिन की कहानी हो गयी है।


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