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विभावि : बंद होने लगी थी पीएचडी की दुकानदारी

गजेंद्र ंिसंह, हजारीबाग : विभावि में पीएचडी की दुकानदारी पर अब ग्रहण लगने लगा है। इसका श्रेय एक ओर क

By Edited By: Published: Tue, 28 Jul 2015 08:59 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2015 08:59 PM (IST)
विभावि : बंद होने लगी थी पीएचडी की दुकानदारी

गजेंद्र ंिसंह, हजारीबाग : विभावि में पीएचडी की दुकानदारी पर अब ग्रहण लगने लगा है। इसका श्रेय एक ओर कुलपति डॉ. गुरदीप सिंह व प्रतिकुलपति डॉ. मनोरंजन प्रसाद सिन्हा को जाता है, तो दूसरी ओर यूजीसी के ताजा दिशा निर्देशों को। यूजीसी ने शोध पुस्तकों के परीक्षण के लिए तय सूची में न्यूनतम एक विदेशी विषय विशेषज्ञ को शामिल करना अनिवार्य कर दिया है। इसके अलावा अब शोध पंजीयन के पूर्व लिखित परीक्षा का प्रावधान अनिवार्य हो गया है। तात्पर्य यह कि शोध कार्य के मार्ग में कई शैक्षिक बाधाओं के बावजूद तय हो गया है, जिसे सकुशल पार करना शोद्यार्थी व शोध निदेशकों के लिए जरूरी हो गया है। इससे अब शोध कार्य होते हुए दिखने भी लगा है। शोध साक्षात्कारों में भी शोधार्थी से विषय से जुड़े प्रश्नों की बौछार होने लगी है। सर्वाधिक दिलचस्प यह है कि अब शोध साक्षात्कारों के बाद शोधार्थी की जेब के बूते होने वाले महाभोजों की भी परंपरा लुप्त होने लगी है। वस्तुत: वर्तमान कुलपति प्रतिकुलपति की टेढ़ी नजर इन कुत्सित परंपराओं पर पड़ने लगी है। शोध कार्य के लिए सुर्खियों में रहे इतिहास व हिंदी विभाग भी अब सहमते हुए न कार्यो को अंजाम दे रहे हैं। कुलपति डॉ. सिंह ने यह व्यवस्था करने की कोशिश की कि प्रति संकाय समूह में शोध कार्य हो। आये दिन शोध कार्यो पर उठ रही उंगलियों को ध्यान में रखते हुए तहकीकात की प्रक्रिया विभावि ने तेज कर दी है। पिछले दिनों इसके लिए एक समिति भी गठित हुई, जिसने इतिहास विभाग की ताजा शोध गतिविधियों का जायजा लिया। कुलपति डॉ. सिंह ने स्वयं डीएसडब्ल्यू डॉ. मंजुला सांगा व डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव के साथ हंस के नीर-क्षीर विवेक का परिचय दिया। इसकी वजह से विद्वान शोध माफियाओं की हरकतों पर भी असर दिखने लगा है। मालूम हो कि पहले शोध महाभोजों में कुलपति सहित कई पदाधिकारी फख्र के साथ शामिल हुआ करते थे। अब वे दिन पुराने हो चुके है।


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