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कैश में डील नहीं करता यह 'कैशलेस' भूंजा वाला

भूंजा पांच रुपये का हो या दस का, लेना है तो कैशलेस ट्रांजेक्शन ही करना होगा। नकद में बात नहीं बनेगी।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 28 Nov 2017 02:17 PM (IST)Updated: Tue, 28 Nov 2017 05:06 PM (IST)
कैश में डील नहीं करता यह 'कैशलेस' भूंजा वाला
कैश में डील नहीं करता यह 'कैशलेस' भूंजा वाला

अविनाश कुमार सिंह, गोड्डा। झारखंड के गोड्डा का यह भूंजा वाला मशहूर हो चला है। भूंजा पांच रुपये का हो या दस का, लेना है तो कैशलेस ट्रांजेक्शन ही करना होगा। नकद में बात नहीं बनेगी। यहां के सदर प्रखंड का लहरी टोला निवासी संजय कुमार रोजाना करीब सौ लोगों को कैशलेस ट्रांजेक्शन की सीख देता है।

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संजय ने समाजशास्त्र में एमए किया है। वो भी प्रथम श्रेणी में। पढ़-लिख कर जब कोई ढंग की नौकरी हाथ नहीं लगी, तो खुद का कारोबार जमाना बेहतर समझा। लेकिन पूंजी तो थी नहीं, लिहाजा जो था, उसी से शुरुआत की। पिता रेहड़ी लगाया करते थे, संजय ने इसी काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

भाईसाहब! नकदी नहीं चलेगी:

संजय का कहना है कि जब भारत सरकार और खुद प्रधानमंत्री भी कैशलेस व्यवस्था को अपनाने की अपील लोगों से कर रहे हैं, तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं इसमें योगदान दूं। मैं पढ़ा-लिखा हूं और मुझे यह आता है, इसलिए इसे अपनाया है और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहा हूं। हां, समस्या तो होती है, लेकिन अब लोग भी इसे समझना चाहते हैं, लिहाजा सहयोग करते हैं।

संजय कहते हैं, यदि हर इंसान सचेत हो जाए तो कैशलेस व्यवस्था का सपना साकार होकर रहेगा। संजय अपने यहां भूंजा खरीदने आनेवाले ग्राहकों से कहते हैं कि कैशलेस व्यवस्था को अपनाएं। जो ग्राहक नकद का आग्रह करता है, उससे वे बड़ी ही विनम्रता से कहते हैं, भाईसाहब माफ करें, हमारे यहां नकदी नहीं चलती। भूंजा लेकर भीम एप से भुगतान करें। संजय की कोशिश की सभी सराहना कर रहे हैं।

इग्नू से किया है बीए-एमए:

संजय भूंजा जरूर बेचते हैं, लेकिन पढ़ाई में भी अव्वल रहने के कारण उनके पास जानकारियों का खजाना है। दिव्यांग पिता गरीब थे। रेहड़ी लगाते थे। लिहाजा, संजय अच्छे स्कूल-कॉलेज में दाखिला नहीं ले सके। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्र्वविद्यालय (इग्नू) से स्नातक और स्नात्कोत्तर किया। हालांकि नौकरी नहीं मिल सकी। लेकिन अब उन्हें इसका मलाल नहीं है। वह पूरी शिद्दत से अपने काम में तल्लीन हैं। पत्नी भी उनका पूरा हाथ बंटाती हैं। संजय कहते हैं कि कोई काम छोटा नहीं होता। मेहनत और लगन से हर राह आसान हो जाती है। आज मैं इतना कमा लेता हूं कि परिवार का भरण-पोषण आसानी से होता है।

ताकि पढ़ाई न जाए बेकार:

अपनी कैशलेस मुहिम के बारे में वह बताते हैं कि मैं पढ़ा-लिखा हूं, लेकिन भूंजा बेचने में तो पढ़ाई-लिखाई ज्यादा काम आती नहीं है। मैंने सोचा कि एक पढ़ा-लिखा इंसान यदि भूंजा बेचे तो इस काम को और कितनी बेहतरी से कर सकता है। बस यही सोच इसके पीछे है। मुझे लगा कि मेरी शिक्षा कैशलेस व्यवस्था को आगे बढ़ाने के काम आएगी। बस फिर क्या था, कैशलेस व्यवस्था की बड़ी मुहिम में अपनी छोटी सी भूमिका तय कर ली। लोगों को जागरूक कर जब इस मुहिम से जोड़ता हूं तो बहुत अच्छा लगता है।

शुरू में परेशानी हुई। कई लोगों ने कैशलेस को फुटकर व्यवसाय में शामिल नहीं करने की नसीहत दी। पर मैंने चिंता नहीं की। आगे बढ़ा, आज देखिए मेरी रेहड़ी पर आने वाले अधिकतर लोग डिजिटल भुगतान कर भूंजा लेते हैं। मेरा नाम भी कई ने कैशलेस भूंजावाला रख दिया है। इसमें जिला ई-मर्चेंट टीम ने भी मेरी मदद की। टीम के सदस्यों ने मुझे विभिन्न कैशलेस ट्रांजेक्शन एप की जानकारी दी। इनके सुरक्षित उपयोग के बारे में बताया। अब मैं पांच, दस व बीस रुपये तक का भुगतान यूएसएसडी व भीम एप से लेता हूं। रोज कम से कम सौ लोगों को कैशलेस ट्रांजेक्शन अपनाने को प्रेरित भी करता हूं।

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