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थर्मल पावर के कचरे से संवरेगी जिंदगी

ललमटिया : स्थानीय कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन से उत्पादित फ्लाई ऐश यानि बिजलीघर की राख क्षेत्र के

By Edited By: Published: Thu, 23 Apr 2015 08:25 PM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2015 08:25 PM (IST)
थर्मल पावर के कचरे से संवरेगी जिंदगी

ललमटिया : स्थानीय कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन से उत्पादित फ्लाई ऐश यानि बिजलीघर की राख क्षेत्र के कई बेरोजगारों को रोजगार दे सकता है। राजमहल एरिया में सक्रिय एनटीपीसी ने फ्लाई ऐश आधारित कई रोजगार परक योजनाओं की जानकारी इन दिनों लोगों को दी जा रही है। इस ऐश के कृषि एवं भवन निर्माण के लिए ईट बनाने का कार्य बखूबी किया जा सकता है। बहुचर्चित हो रहे इस पदार्थ को लेकर लोगों को जानकारी नहीं होने के कारण इसका लाभ लोगों को अब तक नहीं मिल सका है।

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क्या है फ्लाई ऐश

यह बिजलीघरों से उत्पादित एक अतिरिक्त उत्पाद है, जिसमें सिलिका, एल्यूमिना, आयरन ऑक्साइड एवं कैल्सियम आक्साइड के अवयव होते हैं। इसमें जिंक, कॉपर, मैग्नीशयम आदि भी सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं जो मिट्टी के समान भौतिक व रासायनिक गुणों से युक्त होते है।

फसलों के लिए गुणकारी फ्लाई ऐश

विभिन्न अनुसंधान प्रयोगशालाओं एवं कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किये गये प्रयोगों से पता चला है कि इसके उपयोग से कई प्रकार की फसलों मसलन तिलहन, गन्ना, कपास, दालें, सब्जियां, आलू, गेहूं, चावल जैसे कई अनाजों की पैदावार में 10 से 25 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। इतना ही नहीं इसके फसलों में प्रयोग से कीटों के आक्रमण को भी रोकने में मदद मिलती है। दीमक प्रभावित क्षेत्रों में इसका प्रयोग अत्यंत ही प्रभावी साबित हुआ है। इसके अलावा इसके प्रयोग से बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने में मदद मिलती है तथा इनके उत्पादों में कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

ईंट बनाने में भी प्रयोग

फ्लाई ऐश का प्रयोग न सिर्फ फसलों में अपितु भवन निर्माण सामग्री के रूप में बनने वाले ईट में भी किया जाता है। एनटीपीसी द्वारा प्रति वर्ष तकरीबन 500 लाख टन उत्पादित कोयला राख व फ्लाई ऐश से अब तक अकेले एनटीपीसी ने 60 करोड़ ईट बना कर अपने भवन निर्माण में प्रयोग किया है। एनटीपीसी की कहलगांव ईकाई द्वारा प्रतिवर्ष 40 लाख टन एवं फराक्का द्वारा 25 लाख टन फ्लाई ऐश उत्पादित हो रहा है। ईंट निर्माण के लिए इस ऐश में सेंड, लाइम,जिप्सम व सिमेंट पानी के साथ मिला कर पेन मिक्सर में डाल कर ईट साचें में डाला जाता है तथा वाटर क्यूरिंग प्रक्रिया के माध्यम से इसे तैयार कर लिया जाता है। एक दूसरी प्रक्रिया के तहत 60 प्रतिशत पोंड ऐश एवं 40 प्रतिशत काली मिट्टी को मिला कर भी परंपरागत तरीके से ईंट बनाने का कार्य किया जा रहा है।

आवश्यकता इस बात की है कि लोग इस प्रक्रिया और फ्लाई ऐश प्राप्त कर इसे रोजगार से जोड़े। यदि ऐसा होता है तो ललमटिया परिक्षेत्र में इस रोजगार के लिए अपार संभावना मौजूद है।


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