यहां जलदेवता की भक्ति कर रही नारीशक्ति!
गोड्डा : तेजी से होता गांवों का शहरीकरण और भूजल के बेहिसाब दोहन से जलसंकट गहराता जा रहा है। शहरों मे
गोड्डा : तेजी से होता गांवों का शहरीकरण और भूजल के बेहिसाब दोहन से जलसंकट गहराता जा रहा है। शहरों में नदियां नाला बनती जा रही हैं, तो गांवों और जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने भी जलस्रोत पर असर डाला है। इसके बावजूद गोड्डा के आदिवासी बहुल इलाकों में जलसंरक्षण के प्रति जगी चेतना बहुत कुछ सोचने को विवश करती है। यहां जलसंरक्षण को लेकर नारीशक्ति ने एक-दो नहीं बल्कि 139 तालाब का निर्माण कर एक नए हिन्दुस्तान की झांकी पेश की है।
नारीशक्ति का जोर : जिले में सिंचाई सुविधाओं के अभाव के कारण यहां खेती भी भगवान भरोसे होती है। खेतों, मवेशियों और खुद के लिए पानी की व्यवस्था करना यहां के लोगों के लिए चुनौती से कम नहीं। ऐसे में 'प्रदान' नामक संस्था ने पोड़ैयाहाट प्रखंड के चरकाटांड़, पहाड़पुर और संझियाकुडा गांव की महिलाओं को संगठित किया और उन्हें भविष्य में होनेवाले जलसंकट के बारे में बताया। उन्हें जलसंरक्षण के बाबत जानकारी दी और इसके फायदे भी बताए।
महिलाओं को संगठित करने के बाद गांव में हर ओर छोट-छोटे तालाब के निर्माण पर सहमति बनी। सबसे पहले चरकाटांड़ गांव का चयन किया गया और स्थानीय महिला-पुरुषों ने मिलकर तालाब का निर्माण शुरू किया। देखते-देखते तालाब निर्माण के इस अभियान ने गांव में जोर पकड़ लिया। छह साल पूर्व चरकाटांड़ से शुरू हुआ यह अभियान आज भी जारी है। इस बीच चरकाटांड़ में 46, पहाड़पुर में 56 और संझियाकुडा में करीब 36 तालाब का निर्माण किया जा चुका है।
सालभर होती खेती : गांव में इतने तालाब के बनने से वर्षाजल संरक्षण में महत्वपूर्ण सफलता मिली। आज गांव के लोग गेंहूं, सरसों, मटर, चना आदि की खेती कर रहे हैं।
रोजगार का मिला अवसर : तालाबों से ग्रामीणों को रोजगार भी प्राप्त हुआ। तालाब में हमेशा पानी रहने से गांवों में सालभर सब्जी का उत्पादन होता है। इसके अलावा तालाबों में मत्स्यपालन भी किया जा रहा है।
अभियान जारी : चरकाटांड़ में शुरू किए गए इस अभियान की सफलता का आलम यह है कि बाद के दिनों में और दो गांव के लोग इससे जुड़े। वर्तमान में सलगाटांड़ एवं बेनुकट्टा के लोग अपने गांव में पानी बचाने का संदेश दे रहे हैं। रेखा देवी और सावित्री देवी ने कहा कि पहले लोग जलसंरक्षण के प्रति सचेत नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुआं अथवा चापाकल का पानी कभी समाप्त नहीं होगा, लेकिन जब संस्था की ओर से इस बाबत जानकारी दी गयी तब आंखें खुलीं।
माला देवी, रासो देवी और शकुंतला देवी की मानें तो गांव की महिलाएं जब भी किसी समारोह में एक जगह होती हैं तो इस अभियान पर चर्चा जरूर करती हैं। यही कारण है कि जलसंरक्षण को लेकर छोटे तालाब के निर्माण का काम लगातार आगे बढ़ रहा है।
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वर्जन-
संबंधित गांवों में तालाब बनाए जाने से भूजल का स्तर भी बढ़ता जा रहा है। छह साल पहले उन गांवों में 150-200 फीट पर पानी मिलता था, लेकिन अब 25-35 फीट पर ही पानी मिल जाता है।
- महमूद, ग्रुप लीडर, प्रदान, गोड्डा