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विदेशी नागरिक ने पहली बार ली दीक्षा

संवाद सूत्र, मधुबन (गिरिडीह) जैन शासन के इतिहास में ऐसा पहली बार किसी विदेशी नागरिक ने

By Edited By: Published: Sun, 18 Jan 2015 08:20 PM (IST)Updated: Mon, 19 Jan 2015 04:07 AM (IST)
विदेशी नागरिक ने पहली बार ली दीक्षा

संवाद सूत्र, मधुबन (गिरिडीह) जैन शासन के इतिहास में ऐसा पहली बार किसी विदेशी नागरिक ने आकर दीक्षा ग्रहण साधु जीवन अपनाया हो। यह एक तरह के नए युग की शुरुआत है।

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ये बातें तलेटी तीर्थ में विराजमान प्रसमिता श्री जी महाराज की शिष्या जिनप्रज्ञा ने कही।

रविवार को निशाबेन की दीक्षा दिलाने के बाद उन्होंने कहा कि अब काफी कुछ बदल रहा है। पहले यहां के लोग अमेरिका तथा अन्य दूसरे देशों में भौतिक कमाई करने जाते थे, लेकिन अब विदेशों से लोग भारत अध्यात्म के क्षेत्र में कमाई करने के लिए पहुंच रहे हैं। कहते हैं कि विदेशों से भारी संख्या में लोग आचार्य श्री के पास धर्म के मर्म के बारे में जानने को जाते हैं। यहा पहुंचते ही उनके मन में उमड़ रही जिज्ञासा शांत हो जाती है। उन्होंने कहा कि 'ओघा' साधुओं के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। दीक्षा का प्रथम सोपान ओघा ग्रहण करना है। दीक्षा ले चुकीं निशा बेन अब उन लोगों के साथ ही रहेंगी तथा उनकी दिनचर्या वैसी ही होगी जैसी एक साधु की होती है। बताया कि प्रथम दिन उनका उपवास रहेगा। बावजूद वे गोचरी करने जायेगी अर्थात भिक्षा लेंगी। सबसे पहले अपने संसारिक माता-पिता के कक्ष में जाकर उनसे गर्म पानी लेंगी। आगे कहा कि दीक्षा के दिन ही उन्होंने अंतिम स्नान किया है। आज के बाद वे कभी स्नान भी नहीं करेंगी। आगे कहते हैं कि साधु जीवन काफी कठिन होता है। इसके लिए मन से वैराग्य का भाव उत्पन्न होना आवश्यक है, तभी साधु जीवन को सफल बनाया जा सकता है।


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