लाखों का भवन पर सुविधा शून्य
जमुआ (गिरिडीह) : जमुआ में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करने के उद्देश्य से सरकार ने लाखों रुपये खर्च कर दो मंजिला भवन का निर्माण तो दो दशक पूर्व करा दिया, लेकिन जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं अब तक उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है। अपनी बदहाली पर खुद अस्पताल जहां आसू बहा रहा है वहीं आम जनों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। अपने स्थापना काल से ही यहां का अस्पताल सुर्खियों में रहा हैं।
एकीकृत बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री विन्देश्वरी दुबे ने 90 केदशक में जमुआ में रेफरल अस्पताल के लिए भवन निर्माण की स्वीकृति दी थी। बताया जाता है कि लाखों रुपये खर्च कर रेफरल अस्पताल का भवन तो बनकर तैयार हो गया, लेकिन फिर इसके उद्घाटन में 10 साल का लंबा समय लगा। स्थानीय लोगों द्वारा लगातार माग किए जाने पर सूबे के प्रथम मुख्यमंत्री सह इस क्षेत्र केसासद बाबूलाल मराडी ने 7 सितम्बर 2004 को काफी तामझाम के साथ जमुआ में रेफरल अस्पताल का उद्घाटन तत्कालीन मंत्री दिनेश षाडंगी, पीएन सिंह, चंद्रमोहन प्रसाद और रवीन्द्र राय की उपस्थिति में तो कर दिया, लेकिन अस्पताल के दिन फिर भी नहीं बहुरे। सासद सहित अन्य मंत्रियों द्वारा अस्पताल में रेफरल लायक सुविधा शीघ्र मुहैया करा देने का आश्वासन पूरी तरह से कोरा साबित हुआ। नाम बड़े और दर्शन छोटे की तर्ज पर यहां नाम रेफरल का था और सुविधा पीएचसी के अनुरूप ही उपलब्ध थी। अस्पताल उद्घाटन के बाद से अब तक बाबूलाल मराडी ही यहां के सासद हैं, लेकिन इन 10 वर्षो में अस्पताल में सुविधा मुहैया करने की दिशा में कोई पहल नहीं की।
वर्ष 2011 में यह अस्पताल फिर से तब सुर्खियों में आया जब यहां बोर्ड पर लिखे रेफरल को मिटा कर उसमें पुन: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लिख दिया गया। काफी हल्ला होने के बाद फिर अस्पताल का नाम बदला और इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लिख दिया गया। फिलवक्त सामुदायिक स्वास्थ्य लायक सुविधाएं भी यहां उपलब्ध नहीं हैं। अस्पताल में सुविधाएं नहीं रहने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। खैर जो भी हो, अस्पताल के मुख्य द्वार पर उद्घाटन के वक्त रेफरल का लगाया गया बोर्ड इसे मुंह चिढ़ाता नजर आता है