पेड़-पौधे और सब्जियां उगाकर कायम की मिसाल
विजय का मानना है कि बदलाव की शुरुआत खुद से करनी चाहिए तभी दूसरों को प्रेरित कर सकेंगे।
गढ़वा, दीपक। वे डीएसपी तो हैं लेकिन चेहरे पर रौब नहीं हरी सब्जियों जैसी ताजगी है। वाणी में कसैलापन के बजाय पानी जैसी शीतलता है। कड़क और रौबदार छवि त्यागकर गढ़वा के रंका में पदस्थापित अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (एसडीपीओ) विजय कुमार पानी और सब्जियों वाले डीएसपी के रूप में चर्चित हैं। बेकार बहने वाले पानी को रोककर विजय कुमार ने न सिर्फ हमेशा पानी से भरे रहने वाले एक डोभा का निर्माण कराया, बल्कि पेड़-पौधे व सब्जियां उगाकर एक मिसाल कायम की।
सब्जियां आसपास के लोगों में बांटने भी लगे हैं। विजय का मानना है कि बदलाव की शुरुआत खुद से करनी चाहिए तभी दूसरों को प्रेरित कर सकेंगे। इसी कारण उन्होंने जल संरक्षण और हरियाली फैलाने के अभियान की शुरुआत अपने घर से की। वह बताते हैं कि छह महीने पहले जब वह रंका आए थे तो उनका आवासीय परिसर झाडिय़ों से पटा था। यहां की मिट्टी भी मोरमी थी (यह मिट्टी आम तौर पर खेती-बागवानी के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती)।
बावजूद खेती-बागवानी से लगाव होने के कारण उन्होंने यहां हरियाली लाने की ठान ली। मेहनत का नतीजा है कि आवासीय परिसर में खीरा, ककड़ी, नेनुआ, भिंडी, करेला समेत तरह-तरह की सब्जियां लहलहा रही हैं।
पानी जमा किया और छा गई हरियाली
बकौल विजय परिसर में खेती के उद्देश्य को पूरा करने में दो बाधाएं थीं। एक तो पानी की कमी और दूसरी बाधा गैर-उपजाऊ मोरमी मिट्टी। हालांकि दोनों के समाधान भी मौजूद थे। इसके लिए प्रयास शुरू किए और देखते ही देखते परिसर हरा-भरा हो गया। छत से गिरने वाले पानी से लेकर आसपास बहने वाले बेकार पानी को एक जगह जमा करने के लिए उन्होंने परिसर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया। परिसर में एक डोभा भी बनवा दिया। इसमें अच्छा-खासा पानी जमा होने लगा और पानी की समस्या दूर हो गई। सिंचाई से लेकर विभिन्न कामों में इस पानी का अच्छा उपयोग हो रहा है।
मोरमी मिट्टी को खेती लायक बनाने के लिए उन्होंने इसमें खूब गोबर डलवाया। तालाब की मिट्टी भी लाकर इसमें डाली गई। फिर जुताई के बाद इसमें खेती की जाने लगी। आसपास के लोग भी इससे सीख लेकर अपने यहां यह प्रयोग करने लगे हैं। इस बंजर जमीन पर आज सब्जियों की इतनी उपज हो रही है कि एसडीपीओ के परिवार और आवास में तैनात कर्मचारियों के उपयोग के बाद जो सब्जियां बच जाती हैं वह आसपास रहने वाले लोगों में बांट दी जाती है। वाटर हार्वेस्टिंग से भू-जल रिचार्ज होने के कारण परिसर व आसपास जलस्तर में भी सुधार हुआ है।
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