नदी को पाट खेती कर रहे ग्रामीण
नगर उंटारी, गढ़वा : बायीं बांकी नदी बचाओ आंदोलन के तहत रविवार को नदी की सफाई और अतिक्रमण मुक्त करने
नगर उंटारी, गढ़वा : बायीं बांकी नदी बचाओ आंदोलन के तहत रविवार को नदी की सफाई और अतिक्रमण मुक्त करने के लिए उद्गम स्थल और अतिक्रमित भाग का निरीक्षण किया गया। सगमा प्रखंड के सगमा जंगल में तिलइया व कबसाहा पहाड़ के संगम स्थल के बीच से बांकी नदी निकली है। बांकी नदी के उद्गम स्थल से ही नदी का अतिक्रमण जारी है। उद्गम स्थल से बारोडीह गांव तक नदी का अता-पता नहीं है। बांकी नदी में लोग क्यारी बनाकर खेती कर रहे हैं। बारोडीह गांव तक नदी को पाटकर उसमें क्यारी बना दी गई है।
पर्यावरण प्रेमी सह भाजपा नेता शारदा महेश प्रताप देव, पेंशन समाज के अध्यक्ष गदाधर पांडेय, सचिव शिवशंकर प्रसाद, पूर्व शिक्षक रामाधार राउत, प्रोफेसर कमलेश पांडेय, डा. धर्मचंद लाल अग्रवाल, अशोक ¨सह, विनय ¨सह, शिवधारी राम, नागेंद्र पांडेय, सुदामा प्रसाद आदि ने बांकी नदी को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए नदी के अतिक्रमित भाग व उद्गम स्थल का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान शारदा महेश देव ने कहा कि बांकी नदी को अतिक्रमण मुक्त व साफ किया जाएगा। इसके लिए पूरे आवाम का सहयोग अपेक्षित है। अतिक्रमण मुक्त करने के कार्य का विधिवत नदी के उद्गम स्थल पर समारोह आयोजित कर शुभारंभ किया जाएगा।
निरीक्षण के दौरान सगमा गांव निवासी रामलखन पासवान ने बताया कि नदी में लोगों द्वारा जो क्यारी बनाया गया है। उसमें बराबर पानी बहते रहता था। इन्होंने बताया कि नदी के उद्गम स्थल का पानी कभी नहीं सूखता था, पर इस वर्ष गर्मी में सूख गया। 10 वर्ष पूर्व तक यहां नदी में पानी में बहता था पर करीब दस से 15 फीट तक नदी में मिट्टी भरकर क्यारी बना दी गई है। उन्होंने बताया कि बांकी नदी उद्गम स्थल वन क्षेत्र में है। एकीकृत बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के कार्यकाल में वन क्षेत्र में भी नदी को पाट कर खेती का कार्य प्रारंभ कर दिया गया था, जिस पर चार वर्ष पूर्व वन विभाग ने रोक लगाई है। वन क्षेत्र के बाहर नदी में खेती करने का कार्य अभी भी जारी है। बम्बा गांव के रामज्ञान चौधरी, सगमा गांव के सोनू यादव ने बताया कि नदी का अतिक्रमण इस कदर किया गया है कि नदी कहां पता नहीं चल पाता है। बारोडीह गांव में नगर उंटारी-धुरकी मुख्य सड़क के किनारे बांकी नदी में फिलहाल मूंग की खेती लहलहा रही है, जिसपर शासन-प्रशासन का ध्यान नहीं है।