प्रचार अभियान चरम पर, मतदाता की नजर सबके करम पर
गढ़वा। गढ़वा व भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में प्रचार अभियान ने आधी का रूप धारण कर लिया है। प्रत्याशिय
गढ़वा। गढ़वा व भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में प्रचार अभियान ने आधी का रूप धारण कर लिया है। प्रत्याशियों को न नींद आ रही है, न भूख लग रही है। प्यास भी कोसों दूर। कुछ देर के लिए झपकी भी लेते हैं तो सपना प्रचार का ही आ रहा है। रही बात चुनावी ऊंट की तो यह जीभ निकालकर भलभलाने लगा है। कभी इधर तो कभी उधर झुक रहा है। अभी किसी करवट बैठा नहीं है। एक व दो नंबर का अपना स्थान मान चुके प्रत्याशी इसे अपनी तरफ बैठाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ऊंट है कि वह किसी को भाव ही नहीं दे रहा है।
गढ़वा विधानसभा क्षेत्र में लड़ाई रोचक मोड़ पर आ चुकी है। झामुमो के मिथिलेश ठाकुर, भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी तथा राजद के गिरिनाथ सिंह तीनों अपनी जीत मान रहे हैं। सभी धुआधार प्रचार अभियान में जुटा है। कोई तीर-कमान के साथ तो कोई हाथ में कमल लिए घूम रहा है। कोई लालटेन जला रहा है तो कोई कंघी से सभी की बबुली ठीक करने में जुटा है। हर प्रत्याशी सभी वर्ग को अपने-अपने तरीके से लुभाने में लगा है। मिथिलेश ठाकुर प्रसिद्ध गायिका श्रद्धा दास के साथ माहौल बनाने में जुटे हैं। भाजपा से भवनाथपुर के उम्मीदवार अनंत प्रताप देव की हवा बनाने के लिए प्रसिद्ध भोजपुरी गायक, अभिनेता सह भाजपा सासद मनोज तिवारी बुधवार को डंडई पहुंचने वाले हैं। समझा जा रहा है कि वह अपने वायदे के मुताबिक गढ़वा में भाजपा प्रत्याशी सत्येंद्र नाथ तिवारी के पक्ष में भी आएंगे।
इसके अलावा प्रत्याशी गढ़वा शहर के व्यवसायियों के साथ भी बैठक कर रहे हैं। अभी हाल ही में झामुमो के उम्मीदवार श्री ठाकुर ने इस तबके के साथ बैठक कर समर्थन मागा। वादा किया कि उनके हर सुख-दुख में साथ रहेंगे। सत्येंद्र नाथ तिवारी भी शहर में सघन जनसंपर्क कर हवा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। गिरिनाथ सिंह भी इस मामले में कम नहीं है। लेकिन सबकी परेशानी का मुख्य कारण ग्रामीण गरीबों का इस समय बाहर चले जाना है। बार-बार सूखे से परेशान गरीब किसान रोपनी व धनकटनी के लिए बाहर चले ही जाते हैं। उनके लिए पेट की आग बुझाने के लिए अन्न का जुगाड़ सबसे पहले जरूरी है। इस समय करीब 25 फीसद मतदाता यूपी के पूर्वाचल में तथा बिहार के सासाराम, औरंगाबाद आदि इलाकों में धान की कटाई करने चले गए हैं। यही कारण है कि गावों में चुनावी हवा की रफ्तार तेज नहीं हो पा रही है। शहर में तो सभी अपने को आगे रहने का दावा कर रहे हैं। गावों में जो मतदाता बचे हैं, वे प्रमुख तीन उम्मीदवारों में से एमएलए रह चुके दो को तौल रहे हैं। उनके द्वारा किए गए विकास का आकलन कर रहे हैं। दरवाजे पर जाने के बाद उनसे सवाल-जवाब भी कर रहे हैं। प्रत्याशियों के पास माफी मागने और अगली बार काम कर देने का आश्वासन देने के सिवा कुछ नहीं रहता।
ऐसे प्रत्याशियों को रंका व चिनिया प्रखंड में जनता को फेस करने में काफी परेशानी हो रही है। सात पंचायतों वाले चिनिया प्रखंड में 31 गाव हैं। इनमें से मात्र तीन गावों में कुछ हद तक सिंचाई हो पाती है। चिरका जलाशय का फाटक खराब रहने के कारण बारिश से जुटा पानी भी बह कर बर्बाद हो जाता है। यह फाटक बंद ही नहीं होता। काम बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन अब तक के जनप्रतिनिधियों ने किसानों की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया। सड़क की बात करें तो गढ़वा से चिनिया तक ही काली है। इसके बाद अंतिम छोर पर बसे रंका गाव तक ऐसा मार्ग है, जिसे रास्ता कहा ही नहीं जा सकता। पुल-पुलियों के अभाव में बरसात में पानी कम होने का इंतजार लोगों को करना पड़ता है। हाथी व साथी (नक्सली) का खतरा अलग से है। यही कारण है कि इसे देश के सबसे पिछड़े प्रखंड की सूची में सबसे ऊपर रखा गया है। आलम यह है कि विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके लोग इस इलाके में जाने से भी कतरा रहे हैं। कारण यह कि मतदाता खुल्लमखुल्ला जवाब देने से नहीं चूक रहे हैं कि आपने उनके लिए किया क्या। शहर में सभी, गावों में कोई-कोई, यही कारण है कि प्रचार की आधी के बावजूद पता नहीं चल पा रहा है कि जीभ निकालकर भलभलाता चुनावी ऊंट किस ओर बैठेगा। इसे अपनी ओर बैठाने के लिए हालाकि प्रमुख उम्मीदवार गिला-शिकवा दूर करने, भविष्य में गलती न करने की दुहाई दे रहे हैं। जो उम्मीदवार एमएलए नहीं रहे, उनकी तो चादी है। वह अपील कर रहे हैं कि ऐसे लोगों को नकार दें, जिन्हें मौका देने के बावजूद विकास नहीं हुआ।