पहले था 'सरगम' अब 'गम'
दुमका के इंडोर स्टेडियम परिसर स्थित 'झारखंड कला मंदिर' के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। 1860 ई. में अंग्रेज हुक्मरान अपनी मेम के साथ बेली डांस करते थे।
राजीव, दुमका। दुमका के इंडोर स्टेडियम परिसर स्थित 'झारखंड कला मंदिर' के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। 1860 ई. में जुबली इंस्टीच्यूट के नाम से स्थापित इस भवन में अंग्रेज हुक्मरान अपनी मेम के साथ बेली डांस करते थे। देश की आजादी के बाद भी कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से इस भवन में आदिवासी कला-संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहल शुरू की गई थी। काफी दिनों तक इसकी ख्याति रही, इस केंद्र से कलाकार तैयार होते थे, कलाकारों को संवारने के लिए प्रशिक्षक भी थे, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ थम सा गया। अब यहां सरगम की जगह सिर्फ गम बच गया है। यह मंदिर अंतिम सांसें गिन रहा है। यहां अब न तो कलाकार तैयार होते हैं और न उन्हें तैयार करनेवाला कोई प्रशिक्षक ही है। नृत्य हॉल में लकड़ी की बनी फर्श को दीमक चट कर गए हैं, भवन जर्जर हो चुका है लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
यह अलग बात है कि तीन कर्मी नियमित रूप से झारखंड कला मंदिर का दफ्तर खोलते हैं। गतिविधि के नाम पर बस यही है। यहां पदास्थापित सहायक निदेशक विजय पासवान रांची में ही रहकर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं जबकि कर्मचारी दिवाकर ङ्क्षसह, चतुर्थवर्गीय कर्मी प्रमिला हेंब्रम एवं नाइटगार्ड सिकंदर मरांडी इस मंदिर की यहां देखभाल कर रहे हैं। इन रखवालों की हालत भी ठीक नहीं है क्योंकि इन्हें प्रत्येक तीन माह पर पगार दिया जाता है।
संगीतज्ञ गौरकांत झा कहते हैं कि यह झारखंड कला मंदिर के दुॢदन का दौर है। एक वक्त था जब यहां गोड्डा जिले के दरोगा सोरेन, सोना सोरेन समेत कई जाने-माने प्रशिक्षक संताली नृत्य-गीत का प्रशिक्षण देकर कलाजत्था तैयार करते थे। तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में दिल्ली में संताली नृत्य को जबरदस्त वाहवाही मिली थी। वर्ष 1984 में पटना के गांधी मैदान में गणतंत्र दिवस पर भारतीय नृत्य कला मंदिर के तहत दा, वापला, नेटुआ एवं ङ्क्षरजा नृत्य की प्रस्तुति के लिए यहां की टीम को द्वितीय स्थान मिला था। इससे संबंधित प्रमाणपत्र अब भी धूल-धूसरित हालत में इस मंदिर के अंदर मौजूद हैं।
कला-संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के राज्य संग्रहालय रांची के क्यूरेटर मो. सैफुद्दीन भी यह महसूस करते हैं कि दुमका में झारखंड कला मंदिर की हालत ठीक नहीं है। हालांकि, उनका दावा है कि कला-संस्कृति विभाग ऐसी धरोहर को पुनर्जीवित करने को लेकर प्रयासरत है।
कला भवन से सटे यहां के संग्रहालय को नए सिरे संवारने की तैयारी हो चुकी है। करीब 10 करोड़ की लागत से यहां अत्याधुनिक म्यूजियम बनाया जाएगा। इसके लिए डीपीआर एवं नक्शा तैयार हो चुका है। दुमका के उपायुक्त के स्तर से इसके निर्माण के लिए अब टेंडर आमंत्रित किया जाना है।
सैफुद्दीन के मुताबिक वर्ष 2015 में ही म्यूजियम का निर्माण कार्य शुरू होना था, लेकिन अपरिहार्य कारणों से मामला लटक गया। अब सब कुछ ट्रैक पर है।