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न पानी न बिजली सिर्फ मिला विस्थापन

By Edited By: Published: Wed, 05 Sep 2012 07:38 PM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2012 07:43 PM (IST)
न पानी न बिजली सिर्फ मिला विस्थापन

राजीव, मसानजोर (दुमका)

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देश आजादी के महज दो वर्ष बाद ही 12 मार्च 1949 को बिहार और बंगाल सरकार ने दुमका (तबका संताल परगना) के मसानजोर में बांध बनाने का निर्णय लिया था। उद्देश्य यह कि संताल परगना की सीमा पर अवस्थित पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले को सुखाड़ से बचाया जाए। सो, तबके सरकारों ने तय किया कि क्यों नहीं देवघर के त्रिकूट पहाड़ से निकलने वाली पहाड़ नदी मयूराक्षी या मोर जो कि तकरीबन 150 मील की लंबी यात्रा कर वीरभूम में जाकर भागीरथी में समा जाती है, को मसानजोर में छेंक कर बांध बना दिया जाए। इस नदी में संताल परगना की अन्य दूसरी छोटी नदियों के जल स्रोतों के कारण सालों पर पर्याप्त जल रहने के कारण इस सहमति पर मयूराक्षी बहुउद्देश्यीय परियोजना के नाम से अंतिम तौर पर मुहर लगा दी गयी और इस मुहर पर चांद लगा दिया कनाडा सरकार ने। कनाडा सरकार ने यहां डैम बनाने के लिए अनुदान व तकनीकी सहयोग दिया। इसलिए मसानजोर डैम को कनाडा डैम के नाम से भी पुकारा जाता है। खैर, 1951 में बांध निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ और 1955 के अंत तक नदी तल से 113 फीट ऊंचा और 2,150 फीट लंबा बांध बनकर तैयार हो गया। बांध का निर्धारित कमांड एरिया 7,93,600 एकड़ था लेकिन यह सिमट कर 5,60,000 एकड़ रह गया। डैम से चार हजार मेगावाट पन-बिजली भी पैदा करने का निर्णय लिया गया था। 16.11 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला इस परियोजना का जलाशय 19,000 एकड़ घने साल, महुआ, मुर्गा के जंगलों को काट कर बनाया गया था। इधर इस परियोजना का सारा प्रशासकीय अधिकार पश्चिम बंगाल सरकार को सौंप दिया गया जिसकी वजह से 21 जल निकासी गेट युक्त इस बांध से संताल परगना की धरती को एक बूंद पानी नसीब नहीं हो सका और इसी एकरारनामा के तहत मात्र दो स्लुईस गेट से निकलने वाली पानी से संताल परगना की धरती को सिंचित करने का निर्णय लिय गया जो आज भी कायम है। बहरहाल, वर्तमान में मसानजोर डैम दुमका जिला के लिए अभिशाप बन चुका है। डैम में बालू व पत्थरों की सिल्टिंग के कारण थोड़े अधिक बारिश में भी दुमका के कई ग्रामीण इलाकों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जा रही है और इसकी वजह से भारी क्षति ग्रामीणों को उठानी पड़ रही है।

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कभी पूरा नहीं हो सका सिंचित करने का लक्ष्य

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एकरारनामा के बाद संताल परगना के खेतों में पानी पहुंचाने के लिए तकरीबन साढ़े बारह मील लंबा मुख्य नहर बनाने का कार्य 1954 में हुआ और यह 1956 में बनकर तैयार हो गया। तकरीबन 81.1 लाख रुपये की लागत से बने नहरों से 1957 में सिंचाई प्रारंभ की गयी तो उस वक्त 25,000 एकड़ भूमि सिंचित करने का लक्ष्य था लेकिन 70 के दशक तक यह लक्ष्य कभी पूरा नहीं हो सका। वर्तमान में

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इसे बाक्स में लें

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लक्ष्य के आंकड़ों में मयूराक्षी परियोजना

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आंकड़े बतातें हैं कि वर्ष 1957-58 में खरीफ फसल को सिंचित करने के लिए 25 हजार एकड़ का लक्ष्य तय था जिसके विरुद्ध महज 4,579 एकड़ भू-भाग पर ही सिंचाई व्यवस्था बहाल हो पाई थी। इसी तरह से इस वर्ष रबी फसल के लिए तय 5000 एकड़ भूमि सिंचित करने के बजाए मात्र 480.39 एकड़ भूमि तक ही सिंचाई पहुंच सकी। वर्ष 1966-67 तक खरीफ फसलों के लिए इस परियोजना का लक्ष्य तो 25 हजार एकड़ तय रहा लेकिन इसके बाद 1967-68 से इस लक्ष्य को घटा कर 15000 एकड़ कर दिया गया। वर्तमान में पूर लक्ष्य का मात्र 25 फीसद हिस्सा ही इस परियोजना के माध्यम से सिंचित हो रहा है।

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हजारों परिवार हुए थे विस्थापित, आज भी खा रहे दर-दर की ठोकरें

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परियोजना को बसाने में 25,000 से भी अधिक आबादी को उजाड़ा गया था। इन विस्थापितों में 80 फीसद संख्या आदिवासियों की थी। जंगलों को बेरहमी से काटा गया सो, अलग। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार विस्थापितों के पुनर्वास में 61.12 लाख रुपये किए गए थे और पुनर्वास व मुआवजा की राशि को जोड़ने पर यह आंकड़ा 2.75 करोड़ रुपये के आसपास थी। इसके बाद भी मसानजोर डैम के विस्थापित दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं और इनका आरोप है कि इन्हें मुआवजा की पूरी राशि आज तक नहीं मिला है।

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बाइट

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देश के अन्य हिस्सों की तरह संताल परगना में भी हरित क्रांति लाने का प्रयास प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रारंभ हो गया था। पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान बना मसानजोर में बना मयूराक्षी बहुउद्देश्यीय परियोजना से इस इलाके को जो लाभ मिलना था वह आज तक नहीं मिल सका। हरे-भरे जंगलों को काटा जाना व हजारों लोगों को विस्थापित करना भी कम दर्दनाक नहीं था। अब तो स्थिति और भी नाजुक व गंभीर हो गयी है।

नलिनी कांत, संयोजक विस्थापन विरोधी राष्ट्रीय अभियान

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बाइट

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मसानजोर डैम कृषकों के लिए अभिशाप बन चुका है। वर्षो पूर्व किया गया एकरारनामा को रद कर नए सिरे से एकरारनामा करने की आवश्यकता है। समय रहते अगर झारखंड और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने निर्णय नहीं लिया तो संभव है कि इस इलाके के लोगों को मजबूरन चरणबद्ध आंदोलन करना होगा।

उदय शंकर राय, कांग्रेसी नेता, रानीश्वर

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