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गाय और बैल बेच कर बिटिया को बनाया फुटबॉलर

सुमित्रा के माता-पिता प्रधान मरांडी व फूलमुनी ने गाय-बैल बेचकर और जमीन बंधक रख बिटिया को फुटबॉलर बनाया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 06 Oct 2017 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 06 Oct 2017 10:39 AM (IST)
गाय और बैल बेच कर बिटिया को बनाया फुटबॉलर
गाय और बैल बेच कर बिटिया को बनाया फुटबॉलर

राजीव, दुमका। कहते हैं दुनिया फुटबॉल की तरह है। गोल। दुनिया गोल की दीवानी है। वहीं, भारत में यह लगभग गोल है। यहां क्रिकेट चलता है। कहते हैं धर्म है। इसी धार्मिक कट्टरता के चलते यहां दूसरे सभी खेल लगभग गोल हैं। भारतीय खेल जगत के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है।

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विश्व फुटबॉल की शीर्ष संस्था फीफा की मानें तो फुटबॉल टेकओवर करने जा रही है। साफ-साफ तो नहीं कहा, लेकिन शायद क्रिकेट का। भारत में पहली बार आयोजित होने जा रहे अंडर-17 विश्वकप का स्लोगन है- फुटबॉल टेक्सओवर। 

क्या सचमुच ऐसा होगा:

भारतीय खेल इतिहास के लिए यह दिन चूंकि ऐतिहासिक है। लिहाजा, आज के इस ऐतिहासिक दिन पर सुमित्रा, पुष्पा, दुलड़ और शिवानी का जिक्र प्रासंगिक होगा। भारत में खेल के मायने, खिलाड़ी बनने के मायने, और क्या फुटबॉल सचमुच टेकओवर कर पाएगा? इन लड़कियों की कहानी ऐसे सभी गूढ़ सवालों के जवाब खुद बयां करती है।

बात करते हैं सुमित्रा की। 

कभी सुना था ये नाम:

शायद ही सुना होगा। कैसे सुनेंगे। झारखंड के दुमका से कुछेक 15 किमी दूर, गादी कोरैया पंचायत के लतापहाड़ी गांव, और इसके अंतिम छोर पर बसे एक गरीब किसान परिवार की बिटिया हैं सुमित्रा। पूरा नाम है सुमित्रा मरांडी। झारखंड में एक और जगह है, गुमला। जहां की पुष्पा तिर्की हैं। इनका नाम भी शायद ही कुछ लोगों ने सुना हो। दोनों आदिवासी बालिकाएं हैं।

पुष्पा भी सुमित्रा जैसी ही पृष्ठभूमि से हैं। लेकिन इन दोनों का असल परिचय यह नहीं है। दोनों भारतीय सीनियर महिला फुटबॉल टीम की सदस्य हैं। सुमित्रा कमाल की डिफेंडर हैं। गत सैफ गेम्स और एशियन चैंपियनशिप की टीम में जगह बनाने पर दोनों चर्चा में आईं।

चर्चा गरीबी की:

इन पर चर्चा हुई।

लेकिन फुटबॉल पर नहीं हुई। इस पर हुई कि किस से तरह गरीब आदिवासी की बेटी फ्रांस और जॉर्डन तक जा पहुंची। जहां प्रतियोगिताएं आयोजित हुई थीं। इन्होंने कैसा खेला? खेल को बढ़ाने में इनका योगदान? भारत में महिला फुटबॉल का भविष्य? ये बातें पीछे छूट गईं। सुमित्रा के माता-पिता प्रधान मरांडी और फूलमुनी ने गाय-बैल बेचकर और जमीन बंधक रख बिटिया को फुटबॉलर बनाया।

यह बात आदर्श स्थापित कर सकती थी, अगर फुटबॉल से जुड़ी होती। फुटबॉल के लिए नहीं। अदद सरकारी नौकरी के लिए यह त्याग किया गया। मरांडी दंपती ने लक्ष्य हासिल भी किया। बिटिया ने खेल कोटे से सीमा सुरक्षा बल में नौकरी पा ली। यही दुलड़, शिवानी और बाकी खिलाडि़यों के साथ हुआ। भारत में फुटबॉल या अन्य खेलों का खेल यहीं आकर खत्म हो जाता है। सुमित्रा फिलहाल बंगाल के सिलिगुड़ी में पदस्थ हैं।

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दुमका की दुलड़ मरांडी और शिवानी सोरेन भी राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेल चुकी हैं और खेल की बदौलत ही इन्हें एसएसबी और सीआरपीएफ में नौकरी मिली है।

-सुमित्रा मरांडी, फुटबॉल खिलाड़ी

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राष्ट्रीय फुटबॉलर सुमित्रा को उपायुक्त ने किया सम्मानित
जागरण संवाददाता, दुमका : दुमका के लतापहाड़ी गांव की रहने वाली राष्ट्रीय फुटबॉलर सुमित्रा मरांडी को उपायुक्त मुकेश कुमार ने गुरुवार को इंडोर स्टेडियम में सम्मानित किया। इंडोर गेम्स के मौके पर उपायुक्त मुकेश कुमार ने सुमित्रा को सम्मान स्वरूप शॉल भेंट की।

उन्होंने कहा कि सुमित्रा ने दुमका ही नहीं झारखंड का मान बढ़ाया है। उन्होंने मौजूद स्कूली खिलाडि़यों से कहा कि मेहनत व लगन से सबकुछ संभव है।

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