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कभी हवेली थी शान, अब इस राजा के वंशज सिर छुपाने को ढूंढ़ रहे मकान

पहाड़िया राजाओं के वंशज अदद छत के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के भरोसे हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 01 Aug 2017 01:57 PM (IST)Updated: Tue, 01 Aug 2017 02:21 PM (IST)
कभी हवेली थी शान, अब इस राजा के वंशज सिर छुपाने को ढूंढ़ रहे मकान
कभी हवेली थी शान, अब इस राजा के वंशज सिर छुपाने को ढूंढ़ रहे मकान

रोहित कर्ण, दुमका। कभी 16 कोस में इनका राज था, हवेली इनकी शान थी लेकिन आज रहने का ठौर तक नहीं, तलाश रहे सिर छुपाने के लिए मकान। यह हालत है गांदो राज परिवार के सदस्यों की। पहाड़िया राजाओं के वंशज आज अदद छत के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के भरोसे हैं। उनकी झोपड़ी के बगल में ही पूर्वजों की खंडहर बनी हवेली सुनहरे अतीत की कहानी कह रही है।

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दरअसल, आजादी के बाद जमींदारी खत्म हुई तो अन्य राजाओं के पास कुछ जमीन और अर्जित संपत्ति ही बची रही। गांदो के पहाड़िया राजाओं से वह भी छिन गया। अंतिम राजा हरिनारायण सिंह की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर बिहार सरकार का कब्जा हो गया। ऐसा संतानहीन होने की वजह से किया गया। हालांकि उनके भाइयों ने संपत्ति पर मालिकाना हक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन इसका अब तक कोई परिणाम नहीं निकला।

हरिनारायण सिंह के चौथे भाई महादेव सिंह के बाद की दो पीढ़ियों की जिंदगी केस लड़ने में गुजर गई। चौथी पीढ़ी के महेंद्र सिंह को भी अभी यही सिद्ध करना पड़ रहा है कि वह इसी राजवंश के सदस्य हैं। वे वंशावली लिए भटक रहे हैं। आदिम जनजाति के लिए तय सरकारी सुविधाओं का भी कोई खास लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। महेंद्र सिंह मैटिक पास हैं। उन्होंने कई प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लिया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अब मजदूरी से घर चला रहे हैं। उनके हिस्से तकरीबन दो बीघा खेत है। इसी में कुछ उपज हो जाती है। एक अदद मकान के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन दिया। पहली किस्त में 24 हजार रुपये मिले, जिससे लिंटर तक का काम हुआ है। दूसरी किस्त का इंतजार है।

जानिए, किसने क्या कहा

वर्ष में एक महीने के लिए इस वंश के लोग फिर राजा का सम्मान पाते हैं। यह अवसर होता है दुर्गापूजा से काली पूजा तक का। राज परिवार द्वारा 1896 में स्थापित काली मंदिर में दुर्गापूजा के दौरान आज भी इसी परिवार के लोग पहली पूजा करते हैं और पाठा बलि देते हैं। परिवार की आखिरी रानी शिवसुंदरी देवी ने ही वर्ष 1966 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मंदिर में कोई पुरोहित नहीं है और फिलहाल पूजा-पाठ महेंद्र सिंह की अगुवाई में ही होती है। परंपराएं निभाई जाती हैं और लोग उन्हें राजा की ही तरह सम्मान देते हैं।

-हरिनारायण सिंह, प्रमुख काली मंदिर, गांदो

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पाकुड़ के महेशपुर में ही पहले अकू सिंह व बकू सिंह दो भाइयों ने राज कायम किया था। बाद में बकू सिंह गांदो आ गए। उन्होंने यहां अपनी हवेली बनाई। हवेली के चारों तरफ पांच कुएं थे। राजा-रानी के लिए अलग-अलग हवेलियां थीं। दरबार भवन भी था। यह संकरा (कर सहित) स्टेट था। सुड़ीचुआं, दामिन व हंडवा स्टेट से इसकी सीमाएं मिलती थी।

-सुशांत सिंह, ग्रामीण

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