कहीं दीप जले कहीं दिल ..
दुमका : देश की आजादी के जंग में सक्रिय रहे स्वतंत्रता सेनानी मो. शहीद अहमद का स्वास्थ्य इन दिनों काफ
दुमका : देश की आजादी के जंग में सक्रिय रहे स्वतंत्रता सेनानी मो. शहीद अहमद का स्वास्थ्य इन दिनों काफी खराब चल रहा है। अपने घर पर वह काफी रुग्न हालत में पड़े हैं और जिंदगी के आखिरी लम्हों को काट रहे हैं। तकरीबन 91 साल के मो. शहीद अखंड बिहार में महगामा विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए। रामसुंदर दास के नेतृत्ववाली सरकार में पर्यटन मंत्री रहे। हालांकि रमजान के पाक महीने में उनके परिजन उनकी सलामती की दुआएं जरुर कर रहे हैं, लेकिन चलती-अटकती सांसे कब थम जाए इससे सहमे भी हैं। उनके परिजन व शुभचिंतक उन्हें देखने भी पहुंच रहे हैं।
सोमवार को छोटा भाई जहीर अहमद गोड्डा के लोचनी गांव से दुमका आए थे उनकी खैरियत लेने। कहने लगे सरकार संवेदनहीन है। आम आवाम के लिए फिक्रमंद नहीं है। बीते दिनों को याद करते हुए कहा कि वे लोग गंगा-जमुनी तहजीब को करीब से जीने के आदि हैं। वर्तमान दौर में गंगा-जमुनी तहजीब को तख्तो तराज करने की कोशिश हो रही हैं। देश आजादी की दौर को याद करते हुए कहा कि उस वक्त उर्दू और देवनागरी लिपि में रौशनी नाम से एक अखबार निकलता था। स्वतंत्रता सेनानी बुद्धिनाथ झा कैरव और मो. शहीद की इसमें अहम भूमिका थी।
जहीर बताते हैं कि उनके बड़े भाई शहीद ताउम्र ईमानदार रहे जिसका उन्हें फक्र है। घूम-घूम कर किताबें बेचना और किताबों में डूबे रहना उनकी फितरत है। विभिन्न मजहबों की पुस्तकें पढ़ने के शौकीन हैं। मंत्री व विधायक बनने के बाद भी मिजाज नहीं बदला। आम आवाम की खातिर में ही जीवन गुजार दी। वर्ष 1977 में महगामा में कच्चा बांध (हरिपुर डैम) बनाने का भगीरथ प्रयास आज भी जनता की जेहन में है। पटना से उन्हें देखने पहुंचे पुत्र डॉ. मर्तिउर रहमान कहते हैं कि वे अपने पिता के संघर्ष के दिनों को करीब से देखे हैं। कच्ची उम्र में ही वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे। सियासत में उतरे तो आवाम ने उन्हें अर्श तक पहुंचा दिया। परिजन एहतेशाम अहमद ने कहा कि सरकार की संवेदनहीनता यह कि दुमका के सिविल सर्जन से एक चिकित्सक को भेज कर स्वास्थ्य जांच का आग्रह किया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। जबकि दूसरी ओर शहीद सिदो-कान्हु की धरती भोगनाडीह में सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के नुमाइंदे जलसा कर शहीद व स्वतंत्रता सेनानियों को नमन कर रहे हैं। श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहे हैं।
एहतेशाम कहते हैं कि यह विरोधाभास की स्थिति है। सरकार के इस रवैये से जेपी सेनानी और मो. शहीद के अभिन्न जिन्हें वे मरदे सियासी भी कहकर बुलाते हैं, जगनारायण दास बस इतना ही कहते हैं कि शहीदों के मजारों पर लगेगें हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों बांकी यही निशां होगा..।