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कृष्ण की रास लीला प्रसंग सुन विभोर हुए श्रद्धालु

बासुकीनाथ : बासुकीनाथ पंचभैया टोला में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान सप्ताह यज्ञ सह महोत्

By Edited By: Published: Thu, 28 May 2015 06:38 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 06:38 PM (IST)
कृष्ण की रास लीला प्रसंग सुन विभोर हुए श्रद्धालु

बासुकीनाथ : बासुकीनाथ पंचभैया टोला में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान सप्ताह यज्ञ सह महोत्सव के छठे दिन गुरुवार को प्रवचन के दौरान कथा व्यास संजयानंद महाराज ने गोपियों के विरह कथा को अपने मार्मिक सुरों से पंक्तिबद्ध कर भक्तों को झूमने पर विवश दिया। कथा व्यास ने कहा कि गोपियां पीपल, तुलसी तथा मालती लता से कृष्ण का पता पूछती हैं। गोपियों के मन में क्लिंग रूपी जार भाव की निवृत्ति के लिए ही भगवान ने रास रचाया अर्थात काम वासना समाप्त कर प्रेम का वितरण किया। उन्होंने कहा कि गोपियों के मन में जो अभिमान आया था उसे दूर करने के लिए ही भगवान रास के बीच में छुप गये। गोपियां व्यग्र होकर वृंदावन में कान्हा को ढूंढती हैं। विरह वेदना में अपने प्रियतम को पुकारती है और भगवान दो-दो गोपियों के बीच प्रकट होकर रास रचाते हैं। राधा-कृष्ण के रास-लीला का ऐसा जीवंत व्याख्यान श्रोताओं के समक्ष वर्णित किया कि मानो यह देवनगरी बासुकीनाथ वृंदावन में तब्दील हो गयी हो। कथाव्यास ने बताया कि कृष्ण की वेणुनाद सुनते ही गोपियां व्यग्र हो उठी और रास में उपविष्ठ हुई। उसी रास में भगवान कृष्ण के वामपश्‌र्र्व में एक कन्या का अविर्भाव हुआ। गोलोक धाम में कृष्ण नित्य किशोर है लेकिन वृन्दावन धाम में प्रगट लीला में वाल्य एवं सख्यभाव का जो रस वैचित्रय है वह प्रगट लीला में नही है। योगमाया के साथ भगवान ने गोपियों के संग रास किया और भागवत में रास पंचाध्याय की महत्ता को प्रतिपादित किया। इसलिए कृष्ण लीला में रास की परकाष्ठा एवं माधुर्य की चरम सीमा मानी जाती है। कथा व्यास ने रास-लीला की व्याख्या कर जनसमूह को भक्ति सागर में गोते लगाने को विवश कर दिया। वहीं देर संध्या के प्रवचन के दौरान कथा व्यास ने कृष्ण-रूक्मिणी के विवाह दृश्य का सजीव वर्णन किया। इस कथा में यजमान के रूप में सुजीत कुमार झा ने पत्‍‌नी सारिका झा के साथ भाग लिया। जबकि कार्यक्रम के सफल आयोजन में सारंगधर झा, अन्नपूर्णा देवी, जोनू झा, हुरो पंडा, भैरो राव, जितेन्द्र झा, जयकृष्ण झा, कुंदन झा, दिनेश झा, संठी झा आदि बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं।


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