एनडीआरएफ ने खड़े किए हाथ, पिता-पुत्र सदा के लिए दफन
बबलू और रहीम को निकालने की सारी कोशिशें विफल हो गईं और ये पिता-पुत्र जिंदा जमीन में ही दफन हो गए।
जासं, झरिया (धनबाद)। झरिया स्थित इंदिरा चौक के पास बुधवार की सुबह भू धंसान से बनी गोफ में क्षेत्र के रहने वाले 40 वर्षीय बबलू खान व उसका 13 वर्षीय पुत्र रहीम खान जमींदोज हो गया था। घटना के दूसरे दिन रांची से आई नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की टीम घटनास्थल पर पहुंची। लोगों को उम्मीद थी कि यह टीम दोनों को बाहर निकाल लेगी। टीम ने धनसार माइंस रेस्क्यू टीम के सदस्यों से बातचीत की। इनसे घटनास्थल की आग और आसपास के इलाके की जानकारी ली। खुदाई के बाद दिख रही गोफ के मुहाने तक टीम गई। पर, ऊपरी सतह पर 82 और मुहाने के छह फीट अंदर 97 सेंटीग्रेट तापमान होने के कारण टीम ने अंदर जाने में असमर्थता जताई।
अधिक अंदर और अधिक 109 डिग्री सेंटीग्रेट से भी ज्यादा तापमान होने की बात कही। इसके बाद निर्णय हुआ कि भू-धंसान स्थल को मिट्टी, पानी और बालू से भर दिया जाए। इसके साथ ही भराई कार्य शुरू कर दिया गया। बबलू और रहीम को निकालने की सारी कोशिशें विफल हो गईं और ये पिता-पुत्र जिंदा जमीन में ही दफन हो गए। निर्णय की सूचना मिलते ही परिजनों की उम्मीदें टूट गईं और वे बिलख उठे।
एनडीआरएफ व माइंस रेस्क्यू की टीम गुरुवार को तीन घंटे तक माथापच्ची करती रही। टीम इस कोशिश में थी कि शायद तापमान कम करने को कोई युक्ति निकल आए। इसके लिए टीम ने विशेष प्रकार की मशीन स्मोक एयर वेंटीलेटर का प्रयोग किया। यह मशीन गर्म हवा और गैस को खींचकर बाहर निकालती है। मशीन लगाकर गैस खींचने की कोशिश की गई लेकिन जितनी हवा और गैस मशीन निकाल रही थी उतनी ही दुबारा वहां आ जाती थी।
टीम के सदस्यों ने बताया कि इलाके में काफी दूर तक कोयले में आग लगी है। इसलिए यह मशीन भी प्रभावी नहीं हो पा रही है। इस परिस्थिति में कोई अंदर जाएगा तो उसकी भी जान तापमान और गैस के कारण चली जाएगी। करीब पौने दो बजे दुबारा तापमान की जांच की गई तो तापमान की वही स्थिति दिखी। अंतत: टीम के सदस्यों ने अंदर नहीं जाने का निर्णय लिया। करीब दोपहर दो बजे राहत कार्य को टीम ने समाप्त कर दिया और टीम वापस चली गई।
ऐसी परिस्थिति में पहले कभी नहीं किया काम:
एनडीआरएफएनडीआरएफ टीम के इंस्पेक्टर सरोज कुमार ने बताया कि इस परिस्थिति में कभी काम नहीं किया। हमारा काम रेस्क्यू का है। पर, यह तो खदान की आग है। इससे पहले गोड्डा में बचाव कार्य किया था। लेकिन वहां की स्थिति अलग थी। वहां ओपेन कास्ट परियोजना थी। यह तो भूमिगत आग और भूमिगत खदान का मामला है। ऐसी परिस्थिति का पहली बार सामना कर रहे हैं। गोफ का तापमान बहुत ज्यादा है। इसमें काम नहीं किया जा सकता है। जिला प्रशासन अब यहां की स्थिति के बारे में आगे का निर्णय लेगा।
इस तरह की परिस्थिति में बचाव के उपाय क्यों नहीं?
धंसानस्थल से जब बबलू और उसके बेटे को नहीं निकाला जा सका। तब वहां मौजूद कई लोगों ने आक्रोश जता प्रशासन पर भी टिप्पणी की। कहा कि गोफ में समाए इंसानों को निकालने को बचाव दल के पास कम से कम ऐसा कवच जरूरी है जो सैकड़ों डिग्री सेंटीग्रेड की आग को बर्दाश्त कर सके। यदि ऐसे संसाधन ही नहीं थे तो टीम को यहां क्यों भेजा गया। सबको मालूम था कि झरिया में आग दहक रही है। यदि उस परिस्थिति में यह टीम काम नहीं कर सकती थी न ही उसके पास ऐसी परिस्थिति में काम करने को कोई कारगर उपकरण थे तो यह तमाशा क्यों।
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