लोकसभा चुनाव नतीजों से महागठबंधन में महाभारत... क्या विधानसभा चुनाव तक साथ रह पाएंगे?
Nirsha झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता अशोक मंडल का कहना है कि निरसा में उनकी तैयारी पूरी है। वे पहले भी डे टु डे पार्टी के काम में लगे हुए थे और अब भी लगे हुए हैं।
धनबाद, रोहित कर्ण। लोकसभा चुनाव नतीजों ने यूपीए गठबंधन के नेताओं को हिला कर रख दिया है। हर कोई अब एक दूसरे को अविश्वास भरी नजरों से देख रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चार महीने बाद होनेवाले विधानसभा चुनावों में ये साथ रह पाएंगे। यह सवाल इसलिए भी लाजिमी है कि कई ऐसी सीटें हैं जहां एक से अधिक दल दावेदारी कर रहे हैं। मसलन निरसा में मासस के अरूप चटर्जी विधायक हैं बावजूद इसके झारखंड मुक्ति मोर्चा के अशोक मंडल वहां दावा जता रहे हैं। इसी तरह सिंदरी में मासस के साथ ही झाविमो दावेदारी कर रहा है तो झरिया में कांग्रेस व टुंडी में झामुमो से खुद को बेहतर बता रहा है। इधर कांग्रेस का भी मानना है कि धनबाद, झरिया व बाघमारा में उसका स्वाभाविक दावा बनता है।
किसी भी विधानसभा में लीड नहीं मिलने पर कांग्रेस जिलाध्यक्ष को अफसोस तो है लेकिन उनका यह भी मानना है कि गठबंधन के अन्य दल भी कोई असर नहीं दिखा सके। अगर वे असरकारक होते तो नतीजा कुछ अलग होता। अब वे लोकसभा में मिले वोटों को कांग्रेस का वोट बताते हुए टुंडी जैसे सीट पर भी दावा जता रहे हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन में शामिल दलों के बीच आपस में महाभारत होना तय लग रहा है।
धनबाद, झरिया व बाघमारा में हमारा स्वाभाविक दावा : कांग्रेस जिलाध्यक्ष ब्रजेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि धनबाद, झरिया व बाघमारा विधानसभा सीट पर कांग्रेस का स्वाभाविक दावा बनता है। यूपीए गठबंधन बना रहा तो इन तीन सीटों पर उनका दावा स्वत: बनता है। यहां वे दूसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि पार्टी की तैयारी जिले की सभी छह सीटों पर है। टुंडी-तोपचांची में हम पहले भी मजबूत रहे हैं। जहां तक गठबंधन के भविष्य का सवाल तो लोकसभा चुनाव में इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला। निरसा, सिंदरी में जहां झामुमो और मासस काफी ताकतवर हैं वहां भी कांग्रेस उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव में उल्लेखनीय मत नहीं मिले। नेता तो ट्रांसफर हुआ पर वोटर ट्रांसफर नहीं हो सके।
सिंदरी, झरिया व टुंडी में झाविमो का दावा पुख्ता : झारखंड विकास मोर्चा के जिलाध्यक्ष ज्ञानरंजन सिन्हा का कहना है कि विधानसभा चुनाव में सिंदरी, झरिया व टुंडी में उनका दावा पुख्ता है। सिंदरी में मासस व टुंडी में झामुमो के सवाल पर उनका कहना था कि वे अक्सर हार रहे हैं। लोग बदलाव चाहते हैं। सीट का कोई फार्मूला तय नहीं हुआ है। दूसरा-तीसरा स्थान से क्या मतलब। यह भी देखना होगा कि कौन कितना सक्रिय है। हमारे कारण से सिंदरी, टुंडी में यूपीए गठबंधन के प्रत्याशियों को अच्छा वोट मिला है।
हमें चाहिए निरसा, सिंदरी और चंदनकियारी सीट : निरसा, चंदनकियारी और सिंदरी में तो हम लड़ेंगे ही। कहना था माक्र्सवादी समन्वय समिति के जिलाध्यक्ष हरिप्रसाद पप्पू का। उन्होंने कहा कि हम किसी गठबंधन में कभी से नहीं थे। हमने भाजपा को हराने के लिए यूपीए गठबंधन के उम्मीदवार को बिना शर्त समर्थन दिया था। इस चुनाव में साबित हो गया कि ऊपर जो गठबंधन हुआ धरातल पर उसका असर नहीं हो पाया। परिणाम सबके सामने है। इसका यदि गंभीरता लोग नहीं समझेंगे तो आनेवाला दिन और विषम होगा। समय और खराब आनेवाला है। हालांकि यह भी सही है कि लोकसभा और विधानसभा का पैटर्न अलग होता है। मेरा मानना है कि नेताओं का मोर्चा नाकाम रहा, उनका हश्र लोगों ने देख लिया। अब कार्यकर्ताओं का मोर्चा बनना चाहिए।
निरसा में हमारी तैयारी पूरी, प्रदेश नेतृत्व पहले तय करे : झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता अशोक मंडल का कहना है कि निरसा में उनकी तैयारी पूरी है। वे पहले भी डे टु डे पार्टी के काम में लगे हुए थे और अब भी लगे हुए हैं। महागठबंधन का क्या हश्र हुआ सब देख ही चुके हैं। अब पहले प्रदेश नेतृत्व बैठक कर विधानसभा के बारे में निर्णय ले उसके बाद आगे का देखा जाएगा। फिलहाल वे प्रदेश नेतृत्व के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। इसी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष कंसारी मंडल भी उनसे इत्तिफाक रखते हैं। उनका कहना है कि जो व्यवस्था है अगर वही हाल रहा तो अगले चुनाव में भी भाजपा वाले ही आएंगे। इस स्थिति पर सबको विचार करना चाहिए।
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