कन्या भ्रूण हत्या जनजातियों में नहीं
धनबाद : कन्या भ्रूण हत्या तथाकथित सभ्य समाज का हिस्सा है जो जनजातियों में नहीं है। उनकी सभ्यता-संस्क
धनबाद : कन्या भ्रूण हत्या तथाकथित सभ्य समाज का हिस्सा है जो जनजातियों में नहीं है। उनकी सभ्यता-संस्कृति से सीख लेने की जरूरत है। इस समुदाय में महिलाओं को कहीं अधिक अधिकार प्राप्त हैं। यह बातें देश के विभिन्न हिस्सों से शिक्षाविदों ने कही। अवसर था पीके राय मेमोरियल के राजनीतिशास्त्र विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का। झारखंड में जनजातिय अधिकार उनका हनन व क्रियान्वयन विषय पर आयोजित कार्यक्रम में आए मुख्य अतिथि मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल ने कहा कि आदिवासियों का शोषण ही होता रहा है। मौजूदा सरकार ने उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास किया है। पर यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है। मेयर ने कहा कि आदिवासी जनजातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।
मुख्य वक्ता बीएचयू से आए डॉ. अमरनाथ पासवान जनजातियों के प्रति बनी धारणा बदलनी होगी और सामाजिक भेदभाव समाप्त करना होगा तभी उनका उत्थान संभव है। उन्होंने कहा कि संस्कृति और विकास के नाम पर जनजातियों के साथ अन्याय हो रहा है। बदलाव का लाभ भी वैसे जनजातियों को हो रहा है जो विकसित हैं और पिछड़ी जनजातियां अब भी इससे दूर हैं। कार्यक्रम में डॉ. कुंदन कुमार, अरविद कुमार सिन्हा, प्राचार्य डॉ. एसकेएल दास, आयोजित सचिव डॉ. प्रवीण सिंह, डॉ. मौसूफ अहमद, डॉ. एमके पांडेय, डॉ. अजीत कुमार व अन्य उपस्थित थे।
----
मोमेंटम झारखंड आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने की साजिश
जनजातियों के अधिकार से जुड़े सेमिनार में मिहिजाम के जेजेएस कॉलेज से आयी प्रो. पुष्पा टोप्पो ने सूबे में आयोजित मोमेंटम झारखंड पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को उनकी कीमती जमीन और संपत्ति से बेदखल करे की साजिश की जा रही है। कॉर्पोरेट घरानों को जमीनें दी जा रही हैं।
शादी के बाद संथाली बेटियां पिता की संपत्ति से वंचित
जनजातियों को जानने के लिए उनकी धर्म-संस्कृति को भी समझना होगा। संथाल जनजाति की बात करें तो उनमें डायन प्रथा आज भी प्रचलित है। साक्षरता दर महज 12.55 फीसद ही है। सबसे बड़ी विडंबना है कि शादी के बाद बेटी पिता की संपत्ति से वंचित हो जाती है। इनके उत्थान के लिए भी पहल करनी होगी।