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कांटों का भी घर मिले बनकर रहो गुलाब..

By Edited By: Published: Sun, 14 Sep 2014 09:51 PM (IST)Updated: Sun, 14 Sep 2014 09:51 PM (IST)
कांटों का भी घर मिले बनकर रहो गुलाब..

जागरण संवाददाता, धनबाद : जैसे हो वैसे दिखो पहनो नहीं नकाब, कांटों का भी घर मिले बन कर रहो गुलाब..। कानपुर से आए प्रख्यात कवि सह वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुरेश अवस्थी की इन पंक्तियों के साथ ही महफिल वाह-वाह से गूंज उठी। अगली पंक्तियों में थे मुंह खोले मिसरी झरे, भीतर धरे बिलेड, मौका पाते गायक ले ए बी सी डी जेड..। अवसर था हिन्दी साहित्य विकास परिषद की ओर से जोड़ाफाटक रोड स्थित इंडस्ट्री एंड कॉमर्स भवन में आयोजित कवि सम्मेलन सह सम्मान समारोह का। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। गुड़गांव से आए डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल के बोल कुछ यूं थे, अगर संकल्प हो मन में अगर चलने का साहस हो, अंधेरे में कदम मंजिल ढूंढ़ लेते हैं, जरूरत अपने हल का रास्ता खुद ही सिखाती है, यहां पंछी हवा में घर का रास्ता ढूंढ़ लेते हैं..। मध्य प्रदेश के धार से आए संदीप शर्मा ने व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहा कि इसके पहले कि सिर्फ बेचने की वस्तु मां-बहनों का तन बनाया जाए, कानून बने न बने सबसे पहले अश्लीलता के विरूद्ध मन बनाया जाए..। सियासतदारों पर व्ययंग करते हुए वाराणसी से आए भूषण त्यागी के बोल थे, दर्द होता रहा छटपटाते रहे, आईने से सदा चोट खाते रहे, वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे, हम वतन के लिए सर कटाते रहे..। महेश मेंहदी, अशोक सुदरानी, दिलीप चंचल, कीर्ति भूषण माथुर जैसी शख्सीयतों ने भी महफिल लूटी। परिषद की ओर से डॉ. सुरेश अवस्थी को हिन्दी सेवी सम्मान तथा राम अवतार खेमका को समाजसेवा सम्मान प्रदान किया गया। परिषद की ओर से पूर्व आइएएस सह प्रख्यात साहित्यकार श्रीराम दुबे ने अतिथियों को सम्मान से नवाजा। कार्यक्रम में परिषद सचिव दिलीप चंचल, केदारनाथ मित्तल, अनंत नाथ सिंह, प्रो. एआर अंसारी व अन्य उपस्थित थे।


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