परिंदों से प्यार बना जिंदगी का सार
गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया
परिंदों से मुहब्बत मोहम्मद इस्लाम रजा की जिंदगी का हिस्सा बन गई है। वे भी इन्हें अपना हमदर्द मानते हैं। पक्षी इनसे डरते नहीं बल्कि मूक अंदाज में इनके प्यार के बदले इन्हें दुलार करने से नहीं चूकते। रोज इस्लाम अपनी दुकान के सामने सुबह शाम इन्हें दाना खिलाते हैं। परिंदे भी निश्चित समय पर पहुंच जाते हैं। इंसान और परिंदों का स्नेह बंधन झरिया के लोगों की जुबान पर है।
नीचे कुल्ही में रहने वाले व इंदिरा चौक के समीप किराना दुकान चलानेवाले इस्लाम 25 वर्षो से परिंदों को रोज दाना खिला रहे हैं। सुबह सात बजे व शाम चार बजे इनकी दुकान के आगे क्षेत्र के जितने भी परिंदे हैं वे आ जाते हैं। करीब एक सौ परिंदे जिनमें कबूतर, चिडि़यां आदि होती हैं नियमित दाना खाने को पहुंचती हैं। इस्लाम कहते हैं कि पांच मार्च 1989 की वह तारीख आज भी याद है। जब पक्षियों को दाना खिलाना शुरू किया। परिंदों को दाना देने की प्रेरणा पिता स्व. मोहम्मद खलील से मिली। यह प्रेरणा आज हमारे जीवन का सार बन गई है। मुझे जितना लगाव अपने परिवार से है उतना ही इन परिंदों से। ये बेजुबान जिस अंदाज में हमें मुहब्बत देते हैं उससे जीवन सफल हो रहा है। अपने लिए तो सभी जीते हैं। इन बेजुबानों के लिये जीकर तो देखें जिंदगी का असली मजा आ जायेगा। इस्लाम परिंदों के आसपास के पशुओं को भी भोजन देते हैं। परिंदों से मुहब्बत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि वे बाहर भी नहीं जाते। अत्यावश्यक होता है तभी वे बाहर जाते हैं। उस समय घर के किसी सदस्य पर परिंदों को दाना देने की जिम्मेवारी देते हैं। इस्लाम का कहना है कि बेजुबानों की सेवा कर हम पर्यावरण का संरक्षण करते हैं। काश हर व्यक्ति इस्लाम के कार्य से प्रेरणा ले ले तो प्रकृति और खूबसूरत हो जायेगी।