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कई गुणों का मिश्रण है रुद्राक्ष, भोलेनाथ को है अतिप्रिय

एकमुखी रुद्राक्ष का महत्व सबसे अधिक है। यह साक्षात शिव एवं परमतत्व परब्रह्म स्वरूप है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 13 Jul 2017 12:26 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jul 2017 12:26 PM (IST)
कई गुणों का मिश्रण है रुद्राक्ष, भोलेनाथ को है अतिप्रिय
कई गुणों का मिश्रण है रुद्राक्ष, भोलेनाथ को है अतिप्रिय

मनोज सिंह, देवघर, विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला में कांवड़ियों के आने का सिलसिला जारी है। मेले के दौरान कांवड़ियों के आकर्षण का केंद्र रुद्राक्ष है। मेले में रुद्राक्ष माला की बिक्री खूब होती है। रुद्राक्ष दो शब्दों से रुद्र एवं अक्ष से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ रुद्र की आंख है। पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान भोलेशंकर ने अपना नेत्र खोलकर एक लंबे समय तक त्रिपुर नामक राक्षस से लड़ाई लड़ी थी।

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लंबी लड़ाई के कारण शिव की आंखें थक गई और इसमें से आंसू बहकर पृथ्वी पर गिर पड़े। इन आंसुओं से रुद्राक्ष वृक्ष का निर्माण हुआ। रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष: अक्ष्यु पलक्षितमं अश्रु तज्जय: वृक्ष: अर्थात शिवजी के अश्रु बूंदों से उत्पन्न हुआ रुद्राक्ष। रूद्राक्ष भौतिक, सांसारिक व परालौकिक के बीच विशिष्ट संबंध बनाता है। रुद्राक्ष की उपस्थिति ग्रहों की विपरीत प्रभाव को कम करती है एवं अमंगलकारी शक्तियों से रक्षा करती है। इसे धारण करने वाले हमेशा स्वस्थ, सफल व सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।

रुद्राक्ष वृक्ष के फल के अंदर से यह प्राप्त होता है। इसकी आंतरिक भित्ति कड़ा, खुरदरा एवं दानेदार होती है। उपर से नीचे तक यह गहरी पट्टी में बंटा रहता है। इन भागों को मुख कहते हैं। रुद्राक्ष में मुखों की संख्या एक से चौदह तक हो सकती है। एकमुखी रुद्राक्ष काफी दुर्लभ है। यह बहुत कम पाया जाता है। दो से तीन मुखी तथा नौ से चौदह मुखी रुद्राक्ष भी बहुत कम पाए जाते हैं। यह कई आकार व आकृति में होते हैं।

अनके गुणों का मिश्रण है रुद्राक्ष

रुद्राक्ष के वृक्ष नेपाल, भूटान, सिक्किम, तिब्बत, इंडोनेशिया एवं हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के फल एवं गरी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग पित्तनाशक, यकृत, टॉनिक, मिर्गी, अनिद्रा, बुखार, सिरदर्द, उच्च रक्तचाप एवं मानसिक रोगों के निदान में किया जाता है।

एकमुखी रुद्राक्ष का महत्व सबसे अधिक है। यह साक्षात शिव एवं परमतत्व परब्रह्म स्वरूप है। द्विमुखी रुद्राक्ष साक्षात अर्धनारीश्वर है। इसको धारण करने से शिव-पार्वती दोनों प्रसन्न होते हैं। तीन मुखी रुद्राक्ष तीन अग्नियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

चार मुखी रुद्राक्ष भगवान विष्णु का सानिध्य देता है। पंचमुखी रुद्राक्ष शिव का स्वरूप माना जाता है। छह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से शिव पुत्र कार्तिकेय प्रसन्न रहते हैं। इसे गणोश का रूप भी माना जाता है। सप्तमुखी रुद्राक्ष सात मातृकाओं को प्रिय है। अष्टमुखी रुद्राक्ष पहनने वालों की यश व कीर्ति बढ़ती है। यह अष्टवसुओं को भी प्रिय है।

नौ मुखी रुद्राक्ष नौ देवियों को प्रसन्न करता है। 10 मुखी रुद्राक्ष यमराज को प्रिय है। इसे देखने मात्र से ही शांति प्राप्त होती है। 11 मुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का प्रतीक है। 12 मुखी रुद्राक्ष महाविष्णु का स्वरूप है। 13 मुखी रुद्राक्ष सिद्धियां देने वाला होता है। 14 मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव का नेत्र माना जाता है।

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