रोमांच से भरी है सुल्तानगंज से बाबाधाम तक की कांवड़ यात्रा
जब कोई कांवड़िया थककर जाता है तो साथ चलने वाले कांवड़िया उसे सहारा देने लगते हैं।
कंचन सौरभ मिश्र, देवघर। श्रावणी माह में रिमझिम फुहार, बादलों के बीच से बीच-बीच में ताक-झांक करता सूरज। जंगल, पहाड़, नदी, गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू। खेत, ग्रामीण परिवेश के बीच कांवर पर बंधी घंटी की टुनटुन की आवाज के साथ बोल बम का नारा लगाते सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर बाबाधाम की ओर निरंतर बढ़ता कांवड़ियों का जत्था अदभुत छटा बिखेरता है।
105 किमी की यह कांवड़ यात्रा शिवभक्तों को रोमांचित कर कर रही है। इस यात्रा में हर कोई सिर्फ शिवभक्त है, न कोई अमीर न गरीब, न कोई बड़ा ना कोई छोटा। हर किसी की पहचान एक शब्द है बम। कांवड़िया पथ में बूढ़े, बच्चे, जवान, महिला, पुरुष सभी का जोश देखने लायक है। कांवड़िया अपनी मंजिल बाबा भोले के दर्शन के लिए सधे कदमों से निरंतर आगे बढ़ा रहा है।
रास्ते में जब कोई कांवड़िया थककर बैठ जाता है, या उसका हौसला जवाब देने लगता है तो साथ चलने वाले कांवड़िया उसे सहारा देने लगते हैं। बोल बम, बढ़े कदम का नारा लगते ही उस कांवड़िया में नए जोश व ऊर्जा का संचार हो जाता है और फिर से वह बुलंद हौसले के साथ अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ने लगता है।
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