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इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानी भवन

करौं (देवघर) : करौं प्रखंड मुख्यालय स्थित 1929 में बना रानी भवन इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया ह

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 11 May 2017 01:00 AM (IST)
इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानी भवन
इतिहास के पन्नों में सिमट गया करौं का रानी भवन

करौं (देवघर) : करौं प्रखंड मुख्यालय स्थित 1929 में बना रानी भवन इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया है। वर्तमान में यह सिर्फ एक धरोहर के रूप में है। एक समय करौं में बघेल राजवंश की चलती थी। लेकिन, 1956 में जमींदारी प्रथा समाप्त होने के बाद सबकुछ खत्म हो गया। शानो शौकत सिर्फ कहानी बनके रह गई है। इस परिवार के सदस्य आज भी रानी भवन में निवास कर रहे हैं। लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रही। हालांकि करौं वासी आज भी राजपरिवार के सदस्यों को राजासाहब कहकर ही बुलाते हैं। यहां के अंतिम राजा स्व. काली प्रसाद ¨सह थे।

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राजपरिवार का इतिहास

राजा दुर्गा प्रसाद ¨सह ने झरिया से आकर 1903 में नीलामी के तहत करौं के 35 व धनबाद जिला का कोलाकुसमा मौजा को खरीदा था। उनकी तीन रानियां थीं। रानी प्रयाग कुमारी देवी, रानी सुभद्रा कुमारी व रानी हेम कुमारी। राजा के निधन के बाद रानी प्रयाग कुमारी देवी को करौं, रानी सुभद्रा कुमारी को धनबाद स्थित धैया व रानी हेम कुमारी को परघा स्टेट का खरपोसदार के रूप में अधिकार मिला। इसके तहत वह संपत्ति का उपभोग तो कर सकती थीं, मगर इसे किसी भी परिस्थिति में न तो बेच सकती थी और न किसी को हस्तांतरित कर सकती थीं। कोई संतान नहीं रहने के कारण राजा दुर्गा प्रसाद ¨सह के निधन के बाद चचेरे भाई शिव प्रसाद ¨सह की ताजपोशी हुई। इनका निधन 31 दिसंबर 1946 को हुआ। उनके बाद बड़े पुत्र काली प्रसाद ¨सह का 1947 में राज्याभिषेक किया गया। उन्होंने अपने चार भाइयों कुंवर तारा प्रसाद ¨सह को पश्चिम बंगाल का सीतू व धनबाद का बाघमारा, ठाकुर श्यामा प्रसाद ¨सह को पश्चिम बंगाल का सीतू के अलावा धनबाद के मनईटांड़ व हीरापुर एवं दो छोटे भाई उमा प्रसाद ¨सह व रमा प्रसाद ¨सह को 1949 में करौं स्टेट मिला। इसके अलावे उमा प्रसाद ¨सह को धनबाद के धैया, हीरापुर में भी जमीन दी गई। रमा प्रसाद ¨सह को धनबाद के धोखरा, हीरापुर व धैया में जमीन मिली। वर्तमान में उमा प्रसाद के दो पुत्र प्रसेनजीत ¨सह व शुभजीत ¨सह एवं रमा प्रसाद ¨सह के दो पुत्र राजेश प्रसाद ¨सह एवं राकेश प्रसाद ¨सह सपरिवार करौं में रहते हैं। जबकि काली प्रसाद ¨सह के दो लड़के महेश्वर प्रसाद ¨सह व विशेश्वर प्रसाद ¨सह सपरिवार झरिया राजबाड़ी में निवास करते हैं। शेष कुंवर तारा प्रसाद ¨सह के दो लड़के जय प्रसाद ¨सह व संजय प्रसाद ¨सह, ठाकुर श्यामा प्रसाद ¨सह के तीन लड़के अजीत प्रसाद ¨सह, स्व. सुजीत प्रसाद ¨सह का परिवार एवं रंजीत प्रसाद ¨सह भी झरिया राजबाड़ी में रहते हैं।

सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान

करौं के राजा ने अपनी प्रजा के हित में कई कार्य किए हैं। रानी मंदाकिनी के नाम से उच्च विद्यालय की स्थापना के लिए जमीन दान दी। इसके अलावा इनकी जमीन पर करौं में प्रत्येक बुधवार को हाट लगती है। राजा तालाब का सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। करौं के सभी लोग राजपरिवार के प्रति काफी सम्मान रखते हैं। यहां के अधिकांश मंदिरों में पहली पूजा राजपरिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है। राकेश प्रसाद ¨सह का कहना है कि वर्तमान में उनकी जमीन पर भू-माफियाओं की नजर है। उन्होंने बताया कि 1956 में जमींदारी प्रथा खत्म हो गयी। परंतु सरकार ने आजतक मुआवजा नहीं दिया है।


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