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दीपक का पता नहीं, बांट रहे घी

देवघर : सूबे में जलसंरक्षण के उद्देश्य से सरकार ने युद्धस्तर पर डोभा का निर्माण कराने की योजना बन

By Edited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 01:02 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 01:02 AM (IST)
दीपक का पता नहीं, बांट रहे घी

देवघर : सूबे में जलसंरक्षण के उद्देश्य से सरकार ने युद्धस्तर पर डोभा का निर्माण कराने की योजना बनाई जो जनहित में बेहद लाभकारी मानी गई। फिर तो ऐसी आपाधापी मची कि सरकारी महकमा डोभा बनने से पहले ही मानो उसमें 'डूब' गया। इस बात का ध्यान तक नहीं रखा गया कि डोभा कहां बनवाया जाए।

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सरकार को प्रस्ताव दिया गया कि सूबे में 31,814 गांव हैं। उनमें अगर 20-20 डोभा बना दिए जाएं तो 'जलबहार' छा जाएगी। छह लाख से अधिक डोभा बनने के बाद शायद ही जलसंकट का सामना करना पड़े। लेकिन, सरकार के सिपहसालार यह बात भूल गए कि बेचिरागी गांवों की संख्या भी हजारों में हैं जहां कोई दीपक जलानेवाला तक नहीं। ऐसे में उन वीरान और उजड़े गांवों में डोभा के रूप में 'घी' बांटने से क्या फायदा।

खेल लक्ष्य का : झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग ने इस योजना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन धरातल पर परिणाम नजर नहीं आ रहा। लक्ष्य निर्धारित करने और बांटने के दौरान इस बात की जानकारी तक नहीं ली गई कि विभागीय दस्तावेज में दर्ज गांवों में कितने बेचिरागी हैं। जिन गांवों में डोभा बनाने का तुगलकी फरमान जारी किया जा रहा है वहां लोग रहते भी हैं या नहीं। और तो और, मनरेगा के लेबर बजट पर भी डोभा का लेबर बजट भारी पड़ रहा है। आखिर एक ही मजदूर कहां-कहां काम करे।

फरमान से हलकान : सरकारी आंकड़े के मुताबिक देवघर में 2653 राजस्व गांव हैं। मनरेगा आयुक्त की ओर से जारी पत्र में दो गांव की संख्या और बढ़ा दी गई जिससे यह आंकड़ा 2655 हो गया। इसी हिसाब से 53,100 डोभा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। 15 जून तक 13,275 डोभा बनाया जाना था। मनरेगा आयुक्त के पत्र में इस बात का जिक्र है कि प्रत्येक राजस्व गांव में 20 डोभा का निर्माण कराया जाए। सभी उपायुक्त एवं उपविकास आयुक्त को यह फरमान जारी किया गया। इससे सबके माथे पर बल पड़ गए। पहले तो आनन-फानन में काम शुरू कर दिया गया लेकिन अब आगे कुछ नहीं सूझ रहा।

हकीकत की बानगी : देवघर जिले के 2653 राजस्व गांवों में 328 ऐसे हैं जहां एक भी आदमी नहीं रहता। 164 गांव ऐसे हैं जहां कहीं एक तो कहीं पांच से छह घर हैं। 70 गांवों में रहनेवालों की संख्या 15 के करीब है। 86 गांवों में केवल 20 परिवार रहता है। अब सवाल यह उठता है कि जिस गांव में कोई नहीं रहता, वहां डोभा का निर्माण किसके लिए। जहां अधिकतम बीस घर हैं, वहां प्रत्येक घर को एक-एक डोभा देने की बात की जा रही है। यह कैसा आदेश है।

अब इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि सूबे के 31,814 राजस्व गांवों की पड़ताल की जाए तो ऐसे-ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे कि सरकार अपने लक्ष्य को लेकर माथा पीटने लगेगी। बेचिरागी गांवों में डोभा का बनाया जाना गोइठा में घी सुखाने वाली कहावत को ही चरितार्थ करेगा।

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कोट-

350 गांव बेचिरागी हैं। तकरीबन 600 गांव ऐसे हैं जहां केवल पांच जॉब कार्डधारी हैं। ऐसे में मजदूर नहीं मिलने की समस्या हो रही है। सरकार को इस बाबत पत्र भी भेजा गया है।

-मीना ठाकुर, डीडीसी सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी देवघर।


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