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तालाबों को बचाने का लिया संकल्प

मधुपुर, (देवघर) : सरकार नया डोभा जिसे तालाब का ही एक छोटा रूप कहा जाता है, पर विशेष ध्यान दे रही है।

By Edited By: Published: Sat, 28 May 2016 01:06 AM (IST)Updated: Sat, 28 May 2016 01:06 AM (IST)
तालाबों को बचाने का लिया संकल्प

मधुपुर, (देवघर) : सरकार नया डोभा जिसे तालाब का ही एक छोटा रूप कहा जाता है, पर विशेष ध्यान दे रही है। परंतु उन तालाबों की फिक्र नहीं हो रही, जिसकी बदौलत रोजगार के सपने संजोए जा सकते हैं, जलस्तर ठीक रखा जा सकता है। भूमि संरक्षण विभाग ने तालाबों का जीर्णोद्धार करना शुरू किया, कुछ हुआ कुछ होना बाकी है। इसी बीच सरकार ने एक लाख से अधिक डोभा का लक्ष्य पूरे सूबे में रख लिया। इतना से भी मन नहीं भरा तो मनरेगा से अलग लक्ष्य तय कर दिया गया। बीडीओ गांव-गांव में जमीन की तलाश कर रहे हैं। एक गांव में 20-20 डोभा बनाने का सपना नहीं लगता कि इस बारिश से पूर्व पूरा हो सकता है, या कह लें कि आने वाले साल तक भी पूरा हो सकेगा। आखिर कोई किसान जमीन देने को तैयार होगा तभी तो वहां डोभा बनेगा। सवाल यह कि डोभा के लिए जमीन खोजी जा रही है, उन तालाबों को नहीं खोजा जा रहा है जिसमें गाद भर आए हैं। तालाब समतल जमीन बन गई है।

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कभी होता था मछली पालन

मधुपुर नगर वार्ड 13 में मत्स्य विभाग का यह तालाब तकरीबन दो एकड़ में है। चार दशक हो गए हैं, किसी ने अब तक सुध नहीं ली। इसकी कहानी सुनेंगे तो प्रसन्नता होगी कि कभी इसमें मछली पालन होता था। 10 साल पहले तक लोगों ने इसमें मछली मारते देखा है। विभाग जो मछली के बदौलत ही जाना जाता है, उसकी नजरें ही बदल गई है। शुक्रवार को दैनिक जागरण के पहल पर तालाब की सफाई शुरू हुई। लोगों ने संकल्प लिया कि सरकार तो भूल ही गई अब वह खुद इस नेक कार्य को करेंगे।

ग्रामीणों ने विभाग को कोसा

मत्स्य विभाग का यह आहार भले ही नगर पर्षद के इलाके में है, लेकिन इसका कतिपय आशय नहीं कि उसे भुला दिया जाए। सफाई करने पहुंचे युवाओं ने विभाग को कोसा। संजीत हड़िया, राजेश हरि, गुड्डू राजवारा, नरेश दास, छोटू दास, मुकेश दास, छोटू हरि समेत इलाके के दर्जनों लोगों ने अभियान में शामिल होने से पहले पूरी रणनीति बनायी। कहा कि यह लोगों की जीवन से जुड़ा है, आखिर किसी को तो आगे आना होगा। जागरण ने यह कदम उठाया है तो हम सब साथ साथ हैं।

पशु की भी बुझती थी प्यास

गर्मी के दिनों में इस आहार में पांच सौ मवेशी आकर अपनी प्यास बुझाते थे। आज पानी नहीं रहने के कारण वह मायूस होकर चले जाते। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि जानवर की याददाश्त तेज होती हैं। वह रास्ता नहीं भूलते। बताते हैं कि इससे जलस्तर ठीक रहता था, आज चापाकल व कुंआ का जल स्तर भी गिर गया है।


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