हादसों के मंजर से सिहर उठता रोम-रोम
देवघर : केदारनाथ हादसे में बहुत से परिवार अपनों से बिछड़ गए, किसी ने माता-पिता को खोया तो किसी ने
देवघर : केदारनाथ हादसे में बहुत से परिवार अपनों से बिछड़ गए, किसी ने माता-पिता को खोया तो किसी ने पत्नी-बच्चों को। जो बच गए उनके आंसू आज भी नहीं थमे। मूल रूप से अंडमान निकोबार निवासी लक्की मिश्रा ने भी अपना सबकुछ केदारनाथ हादसे में खो दिया। अपनी दुख भरी दास्तां सुनाते उसका का गला भर आया और आंखों से आंसू बहने लगे। लक्की ने बताया पिता विनय मिश्रा अंडमान में डीएफओ थे, मां वीणा मुखर्जी चिकित्सक थी, उसका एक छोटा भाई अभिषेक व बहन शालु उर्फ चांदनी से काफी प्यार करता था, उसने एक विधवा सुभाषनी उर्फ गुड्डी से शादी की थी। उसके दो बेटे एक ढाई वर्ष का शिवम, दूसरा बिटटू जिसने अभी एक बसंत ही देखा था। लक्की देहरादून के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करता था। वहां रहते उसे प्रकृति से प्रेम हो गया था।
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अलखनंदा नदी के रौद्र रूप ने किया तबाह
लक्की ने बताया कि 17 जून 2013 की घटना आज भी उसके आंखों के सामने घूम रही है। उसके परिवार के सभी लोग केदारनाथ आए हुए थे। तड़के जब केदारनाथ में हादसा हुआ तो परिवार के लोग नीचे रह गए थे जबकि वह अकेला ऊपर चढ़ गया था। अचानक अलखनंदा नदी का विकराल रूप सामने आया और देखते ही देखते सब कुछ बर्बाद हो गया। इस बाढ़ में उसके परिवार के सात लोग जीवित बचे या नहीं उसे नहीं मालूम। वह खुद सात दिन तक बर्फ में फंसा रहा फिर सेना ने किसी तरह जिंदा बाहर निकला। लंबे समय तक देहरादून में उसका इलाज चला। उसके हाथ में आज भी चोट व आपरेशन के निशान साफ देखे जा सकते हैं। लक्की को आज भी उम्मीद है कि किसी के बचे होने की खबर शायद कभी मिल जाए।
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इनसेट-
कांवरियों की भीड़ में दब
गया था
लक्की के गुरु ने परिजनों से मिलाने की मन्नत लेकर बाबा भोले के दरबार में जाने की सलाह दी। वह अपने दो साथी के साथ देवघर आया। दूसरी सोमवारी को कतार में लगा हुआ था। इस दौरान अचानक लोग दौड़ने लगे। भीड़ में दब गया और गंभीर रूप से घायल हो गया। इलाज के लिए सदर अस्पताल गया। वहां उसकी जेब से मोबाइल व रुपया किसी ने निकाल लिया। इसके बाद बेहोश हो गया। होश आया तो वह रिम्स में था। वहां एक सज्जन मिले जो उसे अपने साथ ले गए। अपने घर में रखा व रांची के डॉ. पीएन झा से इलाज कराया। सुधार होने पर वह अपनी अधूरी पूजा को पूरा करने देवघर आया। यहां एसपी विपुल शुक्ला ने उसकी काफी मदद की। उसके रहने, खाने, हरिद्वार वापस जाने का इंतजाम तो किया ही साथ ही मंदिर प्रबंधन बोर्ड की ओर से घायलों के लिए 25 हजार कि जो घोषणा की गई थी वह उसे नगद दिलवाई। उसके पास झारखंड सरकार से मिला 50 हजार का चेक भी है, लेकिन समस्या है कि उसे निकासी के लिए अंडमान जाना होगा। क्योंकि बैंक खाता वहीं है। गुरुवार की शाम वह ट्रेन से हरिद्वार के लिए इस उम्मीद के साथ रवाना हो गया कि बाबा के आशीर्वाद से किसी दिन परिजनों के बारे में कोई सूचना जरूर मिलेगी।
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बदल गया जीवन
हादसे ने लक्की का जीवन ही बदल गया। उसके मुताबिक काफी समय तक उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था। इस दौरान एक साधु मिले और उसे अपने साथ केदारनाथ के पागलबाबा आश्रम ले गए। वह बीच-बीच में अंडमान जाता है। वहां उसका पालन करने वाली दाई मां जिसे वह बड़ी मां कहता है रहती है।