मनरेगा में गड़बड़झाला, कुआं बना तमाशा
सारठ (देवघर) : प्रखंड में मनरेगा ने गड़बड़ी की सीमा लांघ दी है। योजना में चयन से लेकर उसके भुगतान तक प
सारठ (देवघर) : प्रखंड में मनरेगा ने गड़बड़ी की सीमा लांघ दी है। योजना में चयन से लेकर उसके भुगतान तक पर सवालिया निशान लग गया है। डिंडाकोली पंचायत में एक नहीं ऐसी तीन योजना है जिसमें वित्तीय अनियमितता एवं सरकारी पैसे की लूट दिखती है। हालांकि जांच के बाद ही यह बात सामने आएगी कि इसमें किस स्तर पर किसकी चूक है। जबकि पंचायत से लेकर जिला मुख्यालय तक इसकी मॉनीटरिंग होती है। यहां तक कि पंचायत स्तर पर योजनाओं का अंकेक्षण किया जाता है। तीन कुआ के चयन स्थल व उसके निर्माण से लेकर भुगतान तक की प्रक्रिया पूरी होने तक किसी ने उसे देखने तक की जहमत नहीं उठायी। वास्तव में यह एक बड़ी गड़बड़ी है तो इसके लिए सभी को एक समान नजरों से तौलने की जरूरत है।
केस स्टडी : एक
डिंडाकोली में योजना संख्या 9/12-13 वर्ष 2012-13 में मनरेगा के तहत एक सिंचाई कूप की स्वीकृति मिली। प्राक्कलन राशि 2,10,950 है जबकि योजना को पूर्ण कराने के बाद योजना पंजी के अनुसार भुगतान राशि 2,79,513 किया गया। प्राक्कलन एवं भुगतान के फासले के बाबत रोजगार सेवक का कहना है कि मजदूरी की दर बढ़ जाने के कारण ऐसा हुआ है। प्रावधान भी है कि जब पारिश्रमिक दर में संशोधन होगा तो योजना पूर्ण होने के समय उसी नए दर से भुगतान होगा।
केस स्टडी : दो
लाभुक रामेश्वर मंडल को भी योजना संख्या 8/2012-13 में एक कुआं स्वीकृत किया गया। प्राक्कलन राशि 2,10,950 जबकि पंजीयन के मुताबिक विपत्र 2,75,868 का बना और भुगतान भी हो गया। यहां भी मजदूरी दर में वृद्धि का ही मामला है। योजना संख्या 34 में भी एक कुआं स्वीकृत है। योजना पूर्ण भी हो चुका है।
केस स्टडी : तीन
योजना संख्या 21/12-13 में एक सिंचाई कूप स्वीकृत किया गया। इस मद में अब तक 2.12 लाख का भुगतान भी कर दिया गया है। बताया जाता है कि योजना को अहाते के अंदर बना दिया गया है।
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योजना में क्या है गड़बड़ी
कुआ को देखकर कोई भी कह सकता है कि इसके चयन में ही गड़बड़ी हुई है। आखिर जमीन से इतनी ऊंचाई पर निर्माण का क्या मतलब। आसपास ऐसा भी नहीं बनाया गया है कि उसका उपयोग भी ठीक से हो सके। कहें तो यह एक तरह से टांड़ पर कुआं बना दिया गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि यदि इसकी जांच हो तो मापी में ही गड़बड़ी है। केवल बीस फीट ही गहरा किया गया है, बाकी पंद्रह फीट केवल जोड़ाई कर दिया गया है। लेकिन यह तो जांच का विषय है कि यदि ऐसा हुआ है तो यह वित्तीय अनियमितता का मामला बनता है। ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि गर्मी में यह सूख जाता है। सिंचाई के काम में भी नहीं आता। ग्रामीणों का आरोप है कि अभियंता ने पूर्ण खुदाई का एमबी भर कर वारा न्यारा किया है। इसकी जिला से जांच होनी चाहिए। जानकारी हो कि बीपीआरओ की यह जिम्मेवारी है कि वह पंचायत में संचालित योजनाओं की सतत जांच कर रिपोर्ट करें। दूसरा मुखिया, बीपीओ, बीडीओ, जिला से प्रतिनियुक्त वरीय पदाधिकारी, जिला अंकेक्षण टीम ने भी केवल खानापूर्ति की है।
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योजना तो पूर्ण हो गयी है। सभी योजनाओं का भुगतान भी हो चुका है। रही बात अनियमितता की तो यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। हालांकि यह उनके कार्यकाल का नहीं है।
- प्रमोद कुमार दास, बीडीओ