'जय बाबा धर्मराज' से गुंजायमान हुई करौं नगरी
करौं (देवघर) : ऐतिहासिक और धार्मिक करौं नगरी में धर्मराज पूजा से उत्सवी माहौल देखा जा रहा है। 'जय बा
करौं (देवघर) : ऐतिहासिक और धार्मिक करौं नगरी में धर्मराज पूजा से उत्सवी माहौल देखा जा रहा है। 'जय बाबा धर्मराज', 'जय बाबा राज राजेश्वर' के जयघोष से समूचा इलाका गुंजायमान हो रहा है। चारों तरफ सिर्फ भोक्ता ही नजर आ रहे हैं। इस साल पूजा में कुल 284 भोगता शामिल हो रहे हैं। इसमें कुल 15 महिला भी भोक्ता बनी हुई है। रविवार को सभी भोक्ता मंदिर प्रांगण पहुंचे और क्षौर कर्म कराकर उत्तरीय धारण किया। सुबह में गमछा, बांस की साजी व मिट्टी के बर्तन की खरीदारी में जुटे रहे। भोगता के बीच चना का वितरण किया गया।
मंदिर प्रागण व आसपास विद्युत सज्जा की गई है। मेला के लिए दुकानें सज गई है और बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला लगाया गया है।
कई रहस्यों को समेटे है धर्मराज मंदिर
बाबा बैद्यनाथ की नगरी से साठ किमी दक्षिण में स्थित करौं नगरी में कई मंदिर हैं। इनके पीछे एक लंबा रहस्य समाया हुआ है। धर्मराज मंदिर भी ऐतिहासिक ही है। प्रत्येक साल बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर वार्षिक पूजा का आयोजन किया जाता है। इसमें दूरदराज के सैकड़ों लोग शिरकत करते हैं। धर्मराज पूजा कब से शुरू हुई इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। पूजा विधि में आत्मीयता, एकता, भक्ति, निष्ठा इसे अपने आप में अनूठा बनाती है। बुर्जुगों की मानें तो राजा तालाब में खुदाई के दौरान विचित्र किस्म का काला पत्थर मिला। तत्कालीन राजा ने लोगों को पत्थर को इष्टदेव मानकर पूजा करने का आदेश दिया। पत्थर का रंग काला रहने के कारण इसे धर्मराज नाम दिया गया। धीरे-धीरे बाबा के भक्तों की संख्या बढ़ गई। आपसी भेदभाव को मिटाकर सभी बाबा की भक्ति में लीन हो गए।