किसके माथे पर देवघर का ताज
1967 में जनसंघ के कब्जे में रहा देवघर विधानसभा 34 साल बाद टूटा है भाजपा-जद यू का गठबंधन जागरण
1967 में जनसंघ के कब्जे में रहा देवघर विधानसभा
34 साल बाद टूटा है भाजपा-जद यू का गठबंधन
जागरण संवाददाता, देवघर :
देवों की नगरी देवघर। आपको अपनी मनोरथ पूरी करनी हो तो बाबा बैद्यनाथ के दरबार में आंचल फैला दें पूरी हो जाएगी। यहां आकर आस्था और श्रद्धा की भूख मिट जाती है, पर यहां रहने वाले अब भी विकास के प्यासे हैं। किसी भी पार्टी को विरासत में यहां कुछ नहीं मिल है। हां इतना जरूर है कि चार बार इस सीट पर कांग्रेस तीन बार राजद का परचम लहराया पर फारवर्ड ब्लाक, जनसंघ एवं जनता पार्टी ने भी यहां से खाता खोला था।
देवघर विधानसभा सीट 1962 में सुरक्षित हुआ इससे पूर्व यह भी मधुपुर एवं सारठ की तरह सामान्य हुआ करता था। 1952 में पंडित विनोदानंद झा को भूमि पांडेय ने पराजित किया। 1957 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में आयी शैल बाला राय बाजी मारने में कामयाब रही। जब यह सीट सुरक्षित हो गया तब 1967 में भारतीय जनसंघ पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतारा और बालेश्वर दास चुनाव जीत गए। 1972 में वह कांग्रेस के बैद्यनाथ दास से 5500 वोट से हार गए। उसके बाद पार्टी ने उनको टिकट नहीं दिया। 77 में गोविंद पासवान को ही टिकट दिया गया। पर वह कामयाब नहीं हुए। कांग्रेस के विरोध में चल रही लहर का लाभ 1977 में जनता पार्टी को मिला और वीणा रानी दास जंग जीत गयी। जनसंघ ने तब भी अपना उम्मीदवार दिया। प्रो. कुलदीप रवि दास एवं जग नारायण दास को टिकट दिया गया पर वह सीट निकालने में कामयाब नहीं रहे।
1980 में भारतीय जनसंघ पार्टी भारतीय जनता पार्टी हो गयी। इसके बाद से इस सीट पर गठबंधन का दौर शुरू हुआ। गठबंधन की गांठ इतनी मजबूत रही कि वह 34 साल बाद टूटी और भाजपा ने अपना उम्मीदवार दिया है। अब कई सवाल राजनीतिक जानकार उठा रहे हैं। उनका आकलन है कि वर्तमान समय में गठबंधन की गांठ जो टूटी है उसका असर देवघर विधानसभा सीट पर दिख रहा है। हालांकि यह तो वोटर का बटन की बतलाएगा कि यहां भगवा लहराएगा या लालटेन जलेगा।