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संताल परगना में कद व कद्दावर की प्रतिष्ठा दांव पर

देवघर : संताल परगना के 18 सीट पर चुनाव संपन्न हो गया है। राजनीतिक दृष्टिकोण से उपराजधानी के बाद यदि

By Edited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 01:36 AM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 01:36 AM (IST)
संताल परगना में कद व कद्दावर की प्रतिष्ठा दांव पर

देवघर : संताल परगना के 18 सीट पर चुनाव संपन्न हो गया है। राजनीतिक दृष्टिकोण से उपराजधानी के बाद यदि सबसे अहम जिला कोई है तो वह है देवघर। यहां सरकार में शामिल तीन-तीन कद्दावर नेता भाग्य आजमा रहे हैं। ईवीएम में बंद भाग्य का बटन 23 दिसंबर की सुबह खुलेगा। परिणाम आने के बाद फिर वही पुराना गीत बजेगा कोई जीता कोई हारा..अरे बड़ा मजा आया सुनो सुनो मेरी बात..।

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प्रत्याशी तो जोड़ ही रहे हैं उनके राजनीतिक रणनीतिकार भी सुबह से शाम तक या कह लें कि नींद आने से पहले तक इस जोड़ घटाव में जुटे हैं कि कम से कम इतना वोट तो अमुक अमुक बूथ से आना तय है।

कभी कभी इस बात को सोचकर विचलित भी हो जाते हैं कि जो कहा जा रहा है वह कितना सही निकलता है यह तो 23 को ही पता चलेगा। उम्मीदवारों के घबराहट की एक चिंता यह है कि युवाओं का रुख किस करवट रहा। कुछ अपने को सुरक्षित मान रहे हैं उसके कई मायने भी निकाल रहे हैं।

चौक चौराहे पर जो चर्चा हो रही है वह टीवी चैनल पर आए एक्जिट पोल को केंद्रित कर है। समाचार पत्रों के लेखा जोखा की भी चर्चा चाय की चुस्की के साथ जगह-जगह हो रही है। देवघर की तीन सीट पर सरकार का दाव लगा है। सारठ से स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता, देवघर से मंत्री सुरेश पासवान एवं मधुपुर से मंत्री हाजी हुसैन अंसारी हैं। तीनों सीट पर भाजपा अपनी प्रबल दावेदारी ठोक रही है। देवघर से झामुमो, सारठ से झाविमो का उत्साह भी दो गुणा है।

जीत तो किसी एक ही होगी पर दिल है कि मानता नहीं। सो, सुबह से अंकों के खेल में सभी उलझ गए हैं। शुभचिंतकों का फोन रिसीव करते-करते प्रत्याशियों के मोबाइल का बैटरी साथ देना नहीं छोड़ देता है। साथ नहीं छोड़ रहा है तो जीत हार की बेचैनी, वोट का रुझान और क्षेत्र से मिल रहा आश्वासन।

देवघर, सारठ एवं मधुपुर से जिन प्रमुख प्रत्याशियों का भाग्य बंद हुआ है उसमें कोई भी अपने को पक्का बताने नहीं बता रहा। चेहरे पर हंसी का आना, मुस्कुरा देना यह अलग बात है। यह कहना कि स्योर है, कहने में हिचक हो रही है। इसके पीछे का गणित यह कि सबके वोट बैंक में सेंधमारी हुई है। मोदी फैक्टर सब पर हावी है। इसी बात का डर एक दूसरे को सता रहा है। बावजूद आत्मविश्वास की डोर को जोर से पकड़ने की बार बार कोशिश की जा रही है जो कभी-कभी सरक जाती है। इसके सरकने से ही दिल जोर जोर से धड़कने लगता है।


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