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रिखिया में बह रही गुरु प्रेम की धारा

मोहनपुर (देवघर) : विश्व योगगुरु स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमि रिखिया पीठ में आयोजित पांच दिवसीय

By Edited By: Published: Tue, 25 Nov 2014 01:02 AM (IST)Updated: Tue, 25 Nov 2014 01:02 AM (IST)
रिखिया में बह रही गुरु प्रेम की धारा

मोहनपुर (देवघर) : विश्व योगगुरु स्वामी सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमि रिखिया पीठ में आयोजित पांच दिवसीय सीता कल्याणम् सह शतचंडी महायज्ञ के दूसरे दिन सोमवार को कई अनुष्ठान किए गए। शतचंडी, गुरु पूजन तथा माता जगत जननी के आह्वान से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दौरान भजन, कीर्तन, हवन, नृत्य का दौर चलता रहा। रामायण व सहस्रार्चन पाठ से माहौल भक्तिमय बना रहा। कन्याओं ने मनमोहक नृत्य प्रस्तुत कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विदेश से आए अनुयायियों ने अंग्रेजी कीर्तन सुनाया। भक्तों ने यज्ञ मंडल की प्रदक्षिणा की और प्रसाद ग्रहण किया। देवीचक, लेटवा, पाठकडीह, बरगच्छा, हिरणा, सोनवा, नया चितकाठ, पहरीडीह, पथलगढ़ा व बिहरोजी गांव के हजारों लोगों के बीच वस्त्र और घरेलू उपयोग के सामान प्रसाद के रूप में वितरित किया गया। वहीं रिक्शा, ठेला व गाय भी दी गयी।

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कर्मो के कारण दुखी होता मनुष्य : निरंजनानंद

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शतचंडी महायज्ञ सह सीता कल्याणम् के दूसरे दिन स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। ईश्वर नहीं चाहते कि मनुष्य दुखी हो। मनुष्य अपने कर्मो के कारण दुखी होता है। मनुष्य अपने कर्मो के सहारे अपना भाग्य बदल सकता है। अगर व्यक्ति जागृत अवस्था में खुश रहता है तो मन, स्वभाव व चरित्र बदल जाता है। यह तभी संभव है जब मनुष्य अच्छे कर्म करे। अच्छा कर्म अच्छे कपड़ा पहनना, ज्यादा धन संग्रह करना, मनपसंद भोजन करना नहीं बल्कि अच्छा कर्म दूसरों की सेवा, आराधना, उपासना व भक्ति है। देवी मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। मां का व्यक्तित्व मनुष्य को अपनी तरफ आकर्षित करता है। बच्चे पिता की अपेक्षा मां के अधिक निकट होते हैं। मां वात्सल्य, कोमलता और प्रेम की प्रतिमा है तथा ज्ञान, संस्कार व जीवन देनेवाली है।

बिना भक्ति के नहीं रहेगा संसार : सत्यसंगानंद

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पीठाधीश्वरी स्वामी सत्यसंगानंद ने कहा कि बिना भक्ति के संसार नष्ट हो जाएगा। इसलिए लोग भक्ति मार्ग पर चलें। भक्ति से सुंदरता का अनुभव होता है। भक्ति से सुख, समृद्धि व शांति मिलती है। जब मनुष्य को यह सारी चीजें प्राप्त होती है तो वह सुंदर हो जाता है। दुखी लोग बदसूरत लगते हैं। कहा कि सुख तब होता है जब हमारे भीतर प्रेम होता है। प्रेम का अंत कभी नहीं हो ऐसा प्रेम करना चाहिए। ईश्वर से प्रेम करनेवाला हमेशा खुश रहता है। मां व आत्मा एक समान है। मां से प्रेम आत्मा से प्रेम करने के बराबर है। यहां लोग मां से प्रेम करने, सुख, शांति व समृद्धि के कामना के लिए उपस्थित हुए हैं।


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