भक्तों की मनोकामना पूर्ण करतीं कोटाल काली
करौं (देवघर) : ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टिकोण से करौं जिले के अलावा देश में प्रसिद्ध है। यहां के कोटा
करौं (देवघर) : ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टिकोण से करौं जिले के अलावा देश में प्रसिद्ध है। यहां के कोटाल काली मंदिर में सालोंभर भक्तों का तांता लगा रहता है। दीपावली पर यहां भव्य तरीके से शक्ति स्वरूपा मां काली की पूजा की जाती है। 122 वर्ष से निरंतर तंत्रोक्त विधि से पूजा होती आ रही है। बताया जाता है कि असम के कामरूप कामाख्या से आए पांच साधकों ने मां काली को प्रसन्न करने के लिए अपनी समाधिस्थल पर ही मूर्ति की स्थापना करवा दी। अतीत में कोटाल वंश द्वारा इस मंदिर का पुनरुद्धार किया गया तब से यह कोटाल काली के नाम से जाना जाने लगा। काली पूजा के लिए कोटाल वंश के लोग ढोल-ढाक, गाजे-बाजे समेत सभी परिजनों के साथ मंदिर आते हैं एवं मां की विधिवत पूजा करते हैं। इसके बाद अन्य भक्त पूजा करते हैं। उपासक भी यहां तंत्र साधना के उद्देश्य से पहुंचते हैं।