पटाखों के बिना भी हो सकती है दीपावली
देवघर : दीपावली का मतलब फूलझड़ी से हुआ करता था। पर आज आतिशबाजी शब्द ऐसा भयावह बना दिया गया है कि उससे
देवघर : दीपावली का मतलब फूलझड़ी से हुआ करता था। पर आज आतिशबाजी शब्द ऐसा भयावह बना दिया गया है कि उससे डर लगने लगता है। दीपावली की रात ऐसी कितनी घटनाएं हो जाती है, जिसकी दर्दनाक सुबह होती है। बावजूद लोग उससे परहेज नहीं करते।
बीते साल की ही बात है कि एक नहीं ऐसे दो घटना दीपावली की रात घटी। 10 वर्षीय गोविंद हाथ में पटाखा लेकर छोड़ रहा था। वह घायल हो गया, क्योंकि उसके अभिभावक बेफिक्र होकर उसे देख रहे थे। 30 वर्षीय युवक जो विलासी का रहनेवाला था उसका दाहिना हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया, क्योंकि बम का पलीता ऐसा था कि उसमें आग लगाते ही वह बिना समय दिए फट गया। ऐसे में सावधानी आवश्यक है, पर लोग मानते ही नहीं। केवल फूलझड़ी से भी दीपावली मनायी जा सकती है।
यह कोई जरूरी नहीं कि पटाखों पर लाखों रुपया खर्च करने से ही लक्ष्मी का आगमन होगा। यह तो आडंबर है, इसका परित्याग समाज को करना होगा।
तपेश्वर चौधरी
केवल आतिशबाजी का ही पर्व दीपावली नहीं है। दीया व बाती का पर्व है, घर को रोशन करना है। कम से कम पटाखा का प्रयोग हो, कोशिश यह हो कि पटाखा से परहेज किया जाय।
राजेश सिंह, श्रम अधीक्षक
दीपावली के दिन इतनी आतिशबाजी होती है कि बड़े, बुजुर्ग व बीमार लोगों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में पटाखा से परहेज करना चाहिए।
बीके झा, डीपीआरओ
महिला व बच्चे घर आंगन को सजाने व संवारने में लगी रहती है। रंगोली बनाकर सजाया जाता है, दीया जलाकर रोशन किया जाता है। इस बार कोशिश यह करें कि कम से कम पटाखा का प्रयोग करें ताकि पैसे की बर्बादी कम से कम हो।
रीता चौरसिया
पटाखा से ही आज समाज में संपन्नता का सिंबल हो गया है। यही कारण है कि अधिक से अधिक रुपया बर्बाद किया जाता है। इससे परहेज करने की जरूरत है।
बीरेंद्र सिंह, सहायक अभियंता