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बिना सुविधा टैरिफ बढ़ाने की तैयारी

By Edited By: Published: Thu, 21 Aug 2014 01:02 AM (IST)Updated: Thu, 21 Aug 2014 01:02 AM (IST)
बिना सुविधा टैरिफ बढ़ाने की तैयारी

देवघर : बिजली बोर्ड ने अपने हलफनामा में स्वीकार किया है कि उसके पास स्वीकृत पद से 20 फीसद कर्मी ही हैं। हकीकत यह कि 2001 में जो भी स्वीकृत बल था उसमें 50 फीसद कमी आयी है। उसकी जगह कोई बहाली हुई न वैकल्पिक इंतजाम। जब संस्थान के संचालन की स्थापना का खर्च ही घट गया तो टैरिफ में इजाफा का हक कहां है? मांगने का हक उसे है जिसने सुविधा बढ़ाई हो। उसके सतत सुधार के उपाय किए हों। बिजली बोर्ड की सेवा व गुणवत्ता में गिरावट आयी है।

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यह अलग बात है कि जनवरी 2013 में टैरिफ में वृद्धि का एक प्रस्ताव आयोग को दिया गया था। कायदे से 130 दिन में उसकी सुनवाई नहीं हो सकी। बोर्ड ने उसी के आलोक में जुलाई में एक पूरक आवेदन दे दिया। तकनीकी भूल हो गयी कि उसमें जो दर बढ़ाने की मांग रखी गयी वह जनवरी से कहीं अधिक था। यानि कहने को पूरक आवेदन पर वह नए सिरे से हो गया लिहाजा उस पर सुनवाई ही टाल दी गयी। अब एक बार फिर उस पर विचार कर दर में वृद्धि का आग्रह नियामक आयोग के समक्ष रखा जाय। ऐसा होगा, लेकिन सवाल यह कि जब सेवा में ही त्रुटि है, उपभोक्ता को बिजली ही समय से नहीं मिल रही। उसे भाड़े के मिस्त्री से अपना काम कराना पड़ रहा हो, तो दर में वृद्धि की बात कहां तक सही है।

देवघर में 21 अगस्त को विद्युत नियामक आयोग इसी मसले पर सुनवाई करनेवाली थी। आयोग के सदस्य आरएन शर्मा ने कहा कि रांची में आयोग ने सुनवाई के दौरान तकनीकी कारणों से टैरिफ की मांग को अस्वीकार कर दिया जिस कारण वह तत्काल स्थगित कर दिया गया।

बता दें कि देवघर के उपभोक्ताओं को नित्य बिजली की समस्या से जूझना पड़ता है। ऐसा कोई इलाका या फीडर नहीं जिसमें किसी दिन तकनीकी खराबी नहीं आ जाए। घंटों बिजली बंद कोई सुननेवाला नहीं। कारण मैनपावर का अभाव, आखिर कौन क्या करे। यह तो सीधा-सीधा बोर्ड का मामला है।

सुविधा की हकीकत

1971 में उपभोक्ताओं की संख्या के अनुरूप 20 मेगवाट बिजली की खपत थी। आज निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए 80 से 85 मेगावाट बिजली चाहिए। लेकिन बिजली का घंटो गुल हो जाना, समय से कनेक्शन नहीं मिलना एवं ऑन डिमांड उपभोक्ता की शिकायत का निपटारा नहीं होने में बोर्ड ही सबसे बड़ा दोषी है। आज भी 1971 के ही स्ट्रेंथ पर देवघर विद्युत विभाग टिका हुआ है। हालांकि कर्मचारियों की संख्या 1971 का चौथाई ही रह गया है। नतीजा उपभोक्ता को बेहतर सेवा का दंभ भरनेवाली संस्था विद्युत विभाग, अपने जर्जर तार की तरह तार-तार होता जा रहा है। विभागीय पदाधिकारी भी मानते हैं कि समय दर समय अधिकारी और कर्मचारी की कमी होती गयी जिससे त्वरित सेवा देने का वचन कमजोर पड़ता जा रहा है। आज स्थिति यह है कि देवघर अंचल में गिने चुने बिजली मिस्त्री है। विभाग ने अनुबंध पर भी नहीं रखा है। बाबू भैया कह कर काम चलाया जा रहा है। ग्राहक को काम करवाना है तो भले ही शिकायत दर्ज करा दी जाती है सेवा शुल्क देना होता है। देवघर में आज तकरीबन 75 हजार उपभोक्ता है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र की संख्या 44 हजार के आसपास है। विडंबना देखिए जो भी अधिकारी या कर्मचारी है वह 1971 कीक्षमता के मुताबिक हैं।

फैक्ट फाइल

पदनाम - स्वीकृत पद - पदस्थापित

लाइनमैन - 22 - 1

जू. लाइनमैन - 45 - 23

इलेक्ट्रिशियन - 10 - 0

एसबीओ वन - 24 - 13

एसबीओ टू - 34 - 6

स्किल्ड - 70 - 40

अन स्किल्ड - 151 - 31

अभियंताओं का भी टोटा

12 सेक्शन में 4

सेक्शन - पद - रिक्त

देवघर - 4 - 2

जसीडीह - 3 - 1

सारठ - 3 - 2

मधुपुर - 3 - 1


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