तंत्र साधना के लिए विख्यात बैद्यनाथ धाम
देवघर : वैदिक काल से ही बैद्यनाथ धाम में शिव और शक्ति की आराधना होती रही है। देवघर शिव व शक्ति का संगम स्थल है। इसके आसपास के अन्य शिव मंदिरों में भी शक्ति स्थल विद्यमान हैं। तंत्र साहित्य में शिव व शक्ति की चर्चा है। तंत्र में शिव व शक्ति तत्व ही मूल में बसा है। परम तत्व शिव और शक्ति के अभाव में तंत्र का कोई अर्थ ही नहीं है। समय-समय पर शिव व शक्ति साधना का स्वरूप बदलता रहा है। शिव व शक्ति को एक ही तत्व माना गया है। प्राचीन काल से देवघर साधना स्थल के रूप में विख्यात रहा है। बंगाल के कई साधक बैद्यनाथ धाम आते रहे हैं। इन साधकों का मूल उद्देश्य शिव तत्व की प्राप्ति करना है। देवघर शक्तिपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। तंत्र में शिव व शक्ति की उपासना अनिवार्य मानी गई है। शिव शक्ति का संबंध एक दूसरे का पूरक है। पुरुष व प्रकृति के रूप में इनकी उपासना को महत्व दिया गया है। तंत्र चूड़ामणि में जहां 22 तो देवी भागवत में 108 शक्तिपीठ की चर्चा की।
पुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद विष्णु के चक्र से सती का अंग-प्रत्यंग जहां-जहां गिरा, वे सभी स्थल शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुए। देवघर में माता सती का हृदय गिरा था। इसलिए यह हृदयपीठ के रूप में जाना जाता है। शक्ति साधना की परंपरा में शक्तिपीठों का महत्व सर्वोपरि है। शक्तिपीठों की गणना में देवघर की चर्चा आई है। मत्स्यपुराण में इसे तांत्रिक साहित्य के आधार पर आरोग्य पीठ कहते हुए बैद्यनाथ को प्रधान देवता के रूप में स्वीकार किया गया है। यहां के विभिन्न पीठों में जय दुर्गा व बंगला दोनों का उल्लेख है। मान्यता है कि गुप्तकाल से ही इन शक्ति स्थलों में पूजा-अर्चना चली आ रही है। दस महाविद्याओं के आराधना का यहां उल्लेख मिलता है। देवघर में पथरौल काली मंदिर, त्रिकुटांचल में त्रिशुली माता, हरिलाजोरी, करौं ग्राम आदि जगहों पर भी शक्ति स्थल हैं। जहां प्राचीन काल से ही पूजा-अर्चना चली आ रही है।