सच्ची आजादी दिलाने में जुटे क्रांति के दीवाने
जुलकर नैन, चतरा :'सच्ची आजादी' की चर्चा विनय सेंगर का उल्लेख किए बिना पूरी नहीं होती। रोम-
जुलकर नैन, चतरा :'सच्ची आजादी' की चर्चा विनय सेंगर का उल्लेख किए बिना पूरी नहीं होती। रोम-रोम में बदलाव का संदेश बिखेरने वाले इस शख्स का सपना 'नया भारत' गढ़ने का है। ऐसा भारत जहां सीधी जनभागीदारी पर आधारित शासन हो। शोषण, पूंजीवाद और सामंतवाद का प्रभाव नाममात्र भी नहीं हो। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अच्छी परंपराओं की हिफाजत हो। गांव का शहरीकरण रुके। गांवों से लक्ष्मी (किसान), सरस्वती (बुद्धिजीवी) और शक्ति (मजदूर) के पलायन पर अंकुश लगे। गांव में गांव का राज हो। अर्थात संपूर्ण ग्राम स्वराज्य।
बिहार के सारण जिला स्थित सिताब दियारा क्षेत्र के बैजू टोले में पांच अगस्त 1958 को पैदा हुए क्रांति के इस दीवाने में बचपन से ही समाजिकता कूट-कूटकर भरी थी। छात्र जीवन से विभिन्न जन आंदोलनों से जुड़े रहे इस शख्स का हृदय शोषण, अत्याचार, गैरबराबरी, पूंजीवाद और सामंतवाद के खिलाफ जंग के लिए मचलता रहता था। लिहाजा 1981 में दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद देश में बुनियादी बदलाव की नीयत से गृह त्याग दिया। फिर वामपंथी संघर्ष में कूद पड़े और थाम लिया भारत जन आंदोलन का दामन। उस दौर में भारत को भूमंडलीकरण के आक्रमण से बचाव के लिए प्राकृतिक संसाधन बहुल पांचवी अनुसूची के इलाके में पंचायत अधिनियम और पेसा अधिनियमबद्ध कानून के निर्माण के निमित जोरदार आंदोलन चलाया। 1984 में वामपंथी आंदोलन से उनका मोहभंग हो गया। 1986 में बिहार के बोधगया आकर संपूर्ण क्रांति मंच के स्थापना सम्मेलन में शामिल हो गए। उसके बाद अपना कार्यक्षेत्र बनाया चतरा जिले को। विनय सेंगर बताते हैं कि उन दिनों हंटरगंज प्रखंड के खूंटीकेवाल और जोरी इलाके में दो जमींदारों क्रमश: कामता प्रसाद और भूपेंद्र वर्मा की तूती बोलती थी। शोषण अत्याचार की पराकाष्ठा थी। लिहाजा 1998 में कामता प्रसाद और उसके बाद भूपेंद्र वर्मा के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया। दोनों सामंतो से 5000 एकड़ से ज्यादा जमीन मुक्त करा कर हजारों भूमिहीनों में बांट दिया गया। दो दर्जन से भी ज्यादा गांव सामंती शोषण से मुक्त हो गए। हालांकि इस दौरान जंगलों की कटाई, पहाड़ों का विनाश और नदियों का मिटता अस्तित्व देखकर कलेजा फटता था। खेती योग्य जमीन पर कल-कारखाने खड़ा किए जा रहे थे। वैध- अवैध माइ¨नग से गांव का अस्तित्व मिट रहा था। लिहाजा शुरू कर दी उन्हें बचाने की जंग। इसमें सफलता के लिए गांवों को मजबूत बनाने की जरूरत थी।गांव गनराज के बिना यह असंभव प्रतीत हो रहा था। इसलिए 26 फरवरी 2017 को गांव गणराज्य की स्थापना का ऐलान कर दिया। हंटरगंज प्रखंड के बूढीगाड़ा-कसियाडीह गांव से शुरू हुआ जंगल बचाने का अभियान। इसी प्रकार अफीम उत्पादन में काम आने वाले पोस्ता की खेती के विरोध आंदोलन शुरु किया गया। उस दौरान वशिष्ठ नगर थाने की ¨सदुआरी जंगल में लगाई गई 25 एकड़ में पोस्ते की खेती नष्ट कराई गई। जंगल काटकर राजगुरु क्षेत्र में लगाई गई पोस्ते की फसल के सर्वेक्षण के दौरान सेंगर और उनके साथियों पर हमला किया गया। इसके बावजूद जंगल बचाने का अभियान थमा नहीं। उसी घटना से प्रेरणा लेकर शुरु किया कौलेश्वरी बचाओ अभियान। वन विभाग का सहयोग लेकर कौलेश्वरी अंचल के 15 गांवों में वन प्रबंधन एवं संरक्षण समितियों का गठन किया गया है।