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धूल फांक रही हैं पुरातात्विक धरोहरे

संजय शर्मा इटखोरी : धरोहरे संजो कर रखने के लिए होती है, ताकि आने वाली पीढि़यां प्राचीन सभ्यता व संस्

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 01:00 AM (IST)
धूल फांक रही हैं पुरातात्विक धरोहरे
धूल फांक रही हैं पुरातात्विक धरोहरे

संजय शर्मा इटखोरी : धरोहरे संजो कर रखने के लिए होती है, ताकि आने वाली पीढि़यां प्राचीन सभ्यता व संस्कृति का दीदार कर सकें। धरोहरों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार ने भी पुरातत्व विभाग का गठन कर रखा है, लेकिन यह विभाग ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर पूरी तरह गंभीर नहीं है। इटखोरी प्रखंड के विभिन्न गांवों में धूल फांकते पुरातात्विक पुरावशेष विभागीय उदासीनता के जीवंत उदाहरण है। इस प्रखंड के दर्जनभर से अधिक गांव में प्राचीन कालखंड की प्रतिमाएं व पुरावशेष जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। कुछ स्थानों पर तो ग्रामीण प्राचीन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन कुछ गांव में खंडित प्रतिमाएं बेतरतीब तरीके से बिखरी पड़ी है। जिन्हें देखने वाला कोई नहीं है।

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प्रखंड के करमा खुर्द, बिहारी, संढा, परसौनी, कोनी समेत अन्य कई गांव में हजार साल पुरानी प्रतिमाएं व पुरातात्विक कलाकृतियां देखने को मिल जाएगी। इन अनमोल प्रतिमाओं व कलाकृतियों की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से लेकर झारखंड के कला संस्कृति विभाग को भी है। केंद्र व राज्य के दोनों विभागों के अधिकारियों ने इन गांवों का दौरा कर प्राचीन प्रतिमाओं व कलाकृतियों का निरीक्षण करने के साथ रिपोर्ट भी तैयार किया है। लेकिन इसके बाद भी पुरावशेषों के संरक्षण को लेकर पुरातत्व विभाग के द्वारा कोई काम चलाया नहीं जा रहा है।

ग्रामीणों की हठधर्मिता भी है वजह

पुरातात्विक पुरावशेषों के संरक्षण को लेकर संबंधित गांव के ग्रामीणों की हठधर्मिता भी एक बड़ी वजह है। ग्रामीण पुरातत्व विभाग को प्रतिमाएं व कलाकृतियां सौंपना नहीं चाहते है। ग्रामीणों की मंशा है कि पुरातात्विक पुरावशेषों को गांव में ही संरक्षित कर दिया जाए। लेकिन इसके लिए पुरातत्व विभाग तैयार नहीं है। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पुरातात्विक प्रतिमाओं व अवशेषों को किसी म्यूजियम में ही संरक्षित किया जा सकता है।

वार्ता करने से निकल सकता है रास्ता

पुरातात्विक पुरावशेषों के संरक्षण को लेकर ग्रामीणों से वार्ता कर रास्ता निकाला जा सकता है। इसमें गांव की सरकार का भी सहयोग लिया जा सकता है। लेकिन वार्ता की पहल पुरातत्व विभाग को ही करनी पड़ेगी। गांव में बिखरे पुरावशेषों को मां भद्रकाली मंदिर के म्यूजियम में रखने का प्रस्ताव ग्रामीणों के समक्ष रखा जाए तो उम्मीद है कि ग्रामीण इसके लिए तैयार हो जाएंगे। क्योंकि इस क्षेत्र के ग्रामीणों की मां भद्रकाली मंदिर से गहरी आस्था है।

कोट

पांच वर्ष पूर्व राज्य संग्रहालय के उद्घाटन के वक्त इन पुरावशेषों को संरक्षण के उद्देश्य से स्टेट म्यूजियम, रांची में लाने का प्रयास किया गया था। लेकिन गांव के ग्रामीण इसके लिए तैयार नहीं हुए। आज भी यदि ग्रामीण खंडित प्रतिमा व पुरातात्विक अवशेषों को देने को तैयार होते हैं, तो उसे सहेज कर स्टेट म्यूजियम में रखा जाएगा।

डॉ. सरफुद्दीन, राज्य संग्राहालय के अध्यक्ष, रांची।

पांच वर्ष पूर्व राज्य संग्राहालय के उद्घाटन के वक्त इन पुरावशेषों को

संरक्षण के उद्देश्य से स्टेट म्यूजियम, रांची में लाने का प्रयास किया गया

था। लेकिन गांव के ग्रामीण इसके लिए तैयार नहीं हुए। आज भी यदि ग्रामीण

खंडित प्रतिमा व पुरातात्विक अवशेषों को देने को तैयार होते हैं, तो उसे

सहेज कर स्टेट म्यूजियम में रखा जाएगा।डा. सरफुद्दीन राज्य संग्राहालय के अध्यक्ष, रांची।


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