साढ़े चार दशक तक सज्जादानसीं रहे हजरत मौलाना जुल्फेकार
जुलकर नैन, चतरा : हजरत मौलाना जुल्फेकार अहमद साहब करीब साढ़े चार दशक तक खानकाह रशिदिया का सज्जादानसी
जुलकर नैन, चतरा : हजरत मौलाना जुल्फेकार अहमद साहब करीब साढ़े चार दशक तक खानकाह रशिदिया का सज्जादानसीं रहे। उन्हें एक जून 1969 को खानकाह रशिदिया की खिलाफत मिली थी। यह खिलाफत हजरत मौलाना अब्दुल रशीद रानीसागरी के इंतकाल के बाद मिली थी। हजरत मौलाना 21 वर्ष की उम्र में भागलपुर से चतरा आए थे। यहां आते ही तबलीगी जमाअत से जुड़ गए और त्याग एवं समर्पण की वजह से हजरत रानीसागरी साहब से इतना नजदीक हो गए कि उनके इंतकाल के बाद सज्जादानसीं की कुर्सी हजरत जुल्फेकार को सौंप दिया गया। उत्तराधिकारी का दायित्व मिलने के बाद उनका समर्पण और त्याग और भी बढ़ता गया तथा मुस्लिम और ¨हदू दोनों संप्रदाय के बीच लोक प्रिय हो गए। शहर के दर्जनों अनसुलझे मामलों का हल लोग हजरत से कराने के लिए पहुंचते थे। इसमें दोनों संप्रदाय के लोग शामिल हैं। तबलीग जमाअत को लेकर हजरत मौलाना जुल्फेकार अहमद साहब एशिया सहित सभी छह महादेशो का दौरा किया। जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, यूगांडा, सुडान, साऊदी अरब, श्रीलंका, बंगला देश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, वर्मा आदि देश शामिल हैं। इन सभी देशों में उन्होंने इंसान और इंसानियत का पैगाम को आम करने का प्रयास किया है। हजरत मौलाना की कीयादत में हर वर्ष स्थानीय खानकाह मस्जिद में दो दिनों का तबलीगी जोड़ होता है। जिसमें स्थानीय लोगों के अलावा निकटवर्ती जिलों के हजारों लोग शिरकत कर दीन सिखते थे।