खंडहर में गुजर रही पूस की रात
इटखोरी : आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोगों का पूस के इस कंपकंपाती ठंड से जीना मुहाल कर दिया है।
इटखोरी : आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोगों का पूस के इस कंपकंपाती ठंड से जीना मुहाल कर दिया है। जर्जर हो चुके खंडहर आवासों में इस समुदाय के लोगों को पूस की रात गुजारनी पड़ रही है। ठंड के कारण समुदाय के बच्चे सर्दी व जुकाम से पीड़ित हैं। हैरत की बात यह है कि इस कड़कड़ाती ठंड में प्रशासन बिरहोरों का कोई खोज खबर नहीं ले रहा है। प्रखंड में कटुआ एवं पीतिज गांव में बिरहोर समुदाय के लोग रहते हैं। कटुआ में करीब तीस बिरहोर परिवार जबकि पीतिज में पंद्रह से सोलह बिरहोर परिवारों का आशियाना है। कहने को तो सरकार ने इंदिरा व बिरसा आवास के नाम पर इनकी कॉलोनी बसा दी है। लेकिन अधिकांश कालोनियां खंडहर में तब्दील हो गई है। किसी में दरवाजा नहीं है, तो किसी के आवास का खिड़की गायब है। पूस के इस महीने में रात में चलने वाली ठंडी हवाएं बिरहोरों को सोने नहीं दे रही है। कटुआ के शनिचर बिरहोर बताते हैं कि जंगल से लाई गई लकड़ियों को आवास के भीतर जलाकर किसी प्रकार रात गुजार रहे हैं। सुबह होने के बाद जब धूप की तपिश मिलती है तब समुदाय के लोगों को चैन मिल पाता है।
इससे अच्छा तो कुरहा में ही थे
तीन-चार दशक पहले बिरहोर समुदाय के लोग पत्तों से निर्मित कुरहा में रहा करते थे। बिरहोरों द्वारा बनाई गई कुरहा की बनावट ऐसी होती थी कि उसमें ठंड का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाता था। कड़ाके की धूप से भी बिरहोरों को कुरहा में राहत मिलती थी। लेकिन इस समुदाय के विकास के नाम पर सरकार व प्रशासन ने कुरहा से निकालकर इन्हें पक्के आवास तक का सफर तो तय करा दिया, लेकिन समय-समय पर मरम्मत नहीं होने पाने के कारण बिरहोरों के आवास अब खंडहर होते जा रहे हैं।