झारखंड पुलिस के निशानेबाजों की कद्र नहीं
बोकारो : चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान। कहने का मतलब यह ह
बोकारो : चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।
कहने का मतलब यह है कि काफी पहले से निशानेबाजी और निशानेबाज अहमियत रखते हैं। लेकिन झारखंड पुलिस तो झारखंड पुलिस है। यहां निशानेबाजों की कोई कद्र नहीं। जैसे हैं जिस हाल में है उन्हें उसी तरह छोड़ दिया गया है। प्रोत्साहन के लिए उद्घाटन व समापन कार्यक्रम की रस्म अदायगी व लंबे-चौड़े वादों के अलावा कुछ हाकिमों की ओर से नहीं होती है। यह हाल तब है जब झारखंड में अच्छे निशानेबाजों की नितांत आवश्यकता है। यह राज्य उग्रवाद प्रभावित है। उग्रवाद प्रभावित इलाकों में अच्छे निशानेबाज बड़ी कामयाबी दिला सकते हैं।
हर वर्ष ऑल इंडिया पुलिस ड्यूटी मीट शूटिंग प्रतियोगिता के लिए झारखंड पुलिस की टीम का चयन होता है। जिला से रेंज और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता कर टीम के सदस्यों को चुना जाता है। देश भर के 40 टीम में इस प्रदेश की टीम भी अपना जौहर दिखाती है और अच्छे प्रदर्शन कर लौटती भी है। बीते वर्ष झारखंड पुलिस टीम ने पूरे देश की पुलिस टीम में पांचवां स्थान पाया था। बाहर उनकी करनी पर भले ही प्रोत्साहन मिल जाता हो लेकिन घर में इनकी कद्र नहीं होती है। बीते कई वर्षो के राज्य पुलिस की टीम पर नजर दौड़ाई जाए तो वही पुराने चेहरे मिल जाएंगे जो वर्षो से राज्य पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अगले माह 10 नवंबर से गुड़गांव सीआरपीएफ कैंप में होनेवाली प्रतियोगिता के लिए चयनित 22 सदस्यीय टीम में कई पुराने चेहरे हैं। टीम में नए चेहरों का शामिल नहीं होना इस ओर इशारा करता है कि पुलिस के जवान व अधिकारी निशानेबाजी जैसी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता के प्रति कितने उदासीन हैं। इसके पीछे उपेक्षात्मक रवैया ही एक मात्र कारण है।
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नहीं है अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लायक फायरिंग बट
जैप-चार बोकारो के फायरिंग रेंज में झारखंड पुलिस की टीम के चयन से अभ्यास तक प्रक्रिया बीते कई वर्षाे से हो रही है। वर्ष 1995 के फरवरी माह में इस रेंज को अपडेट किया गया था। उस समय फायरिंग बट पर लाखों खर्च हुए थे। बट को यंत्र चलित बनाया गया था। मगर अभी यह यंत्र चालित बट बेकार पड़ा हुआ है। यहां फायरिंग करनेवाले जवानों व अधिकारियों के लिए यह वर्तमान में किसी काम का नहीं है। दूसरी ओर कहा जाता है कि समय के अनुसार फायरिंग जैसी प्रतियोगिता में बहुत कुछ बदल गया है लेकिन यहां इस विषय की ओर कोई ध्यान नहीं देता है। जानकार बताते हैं कि यहां का फायरिंग बट अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के अभ्यास लायक नहीं है। ऑल इंडिया की प्रतियोगिता में हिस्सा लेनेवाले जवानों को राइफल थ्री पोजिशन के लिए 300 मीटर की दूरी से फायरिंग कराया जाता है। जानकार बताते हैं कि जैप चार के फायरिंग रेंज में 300 मीटर की जगह 40 गज कम दूरी से ही अभ्यास कराया जाता है। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में जवानों को मुवेवल टारगेट दिया जाता है। इससे उनका ध्यान भंग नहीं होता है जबकि यहां के फायरिंग रेंज में अभ्यास के समय स्थिर टारगेट का इस्तेमाल जवान व अधिकारी करते हैं। इससे भी इनके प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ता है।
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--डीजीपी की घोषणा के बाद भी जैप के एक हवलदार को नहीं मिली प्रोन्नति
नीचेवाले पुलिस अफसरों की कौन कहे राज्य पुलिस के मुखिया ने जैप वन के एक हवलदार को आउट टर्म प्रोन्नति देने की घोषणा की थी। हवलदार अपनी नौकरी में वरीयता के अनुसार दारोगा बन गए लेकिन उन्हें शूटिंग में बेहतर करने के लिए घोषणा के बाद भी प्रोन्नति नहीं मिली। यह हवलदार वर्ष 2004 और 2007 की प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीतकर आए थे। इसके बाद 2007 में ही जैप-वन का एक दूसरा हवलदार जो वर्तमान में इस वर्ष की टीम का भी सदस्य है वह भी ब्रांज मेडल जीतकर आया लेकिन उसे भी कुछ नहीं मिला। वर्तमान टीम के टीम लीडर रांची जिला के दारोगा संचमान तामंग को भी ब्रांज मेडल मिला लेकिन प्रोन्नति नहीं मिली। कुछ दिनों पहले ही कोयला क्षेत्रीय टीम के सदस्यों ने पूरे राज्य की पुलिस टीम में रनर का खिताब जिता। इस टीम के सदस्यों को प्रोत्साहित करने के लिए एक रिवार्ड भी अभी तक नहीं दिया गया है।
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लक्ष्याभ्यास के लिए सुविधा दी जाती है न गोलियां
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए लंबे समय तक अभ्यास की जरूरत है। बीते वर्ष झारखंड पुलिस की टीम को चार माह अभ्यास के लिए दिया गया था। टीम ने पांचवां स्थान पाकर राज्य का नाम रोशन भी किया लेकिन इस बार एक माह से भी कम समय राज्य की टीम को अभ्यास के दिया गया है। ऐसे में टीम कैसे बेहतर कर पाएगी। जवान अनुशासन का हवाला देकर जुबान खोलने से कतराते हैं लेकिन दबी जुबान से यह जरूर कहते हैं कि लक्ष्याभ्यास के दौरान उन्हें जितनी गोलियां चाहिए उतनी नहीं मिलती है।
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ये हैं झारखंड पुलिस टीम के सदस्य
-प्रणव कुमार, सार्जेट, पलामू
-करमू हांसदा, सब-इंस्पेक्टर, जैप-9
-श्याम कुमार, सिपाही, बोकारो
--प्रदीप सिंह, जैप-6
-राजेश कुमार दास, जैप-5
--संदीप कुमार यादव, हजारीबाग
--राजेन्द्र साव, पलामू
--सौरभ कुमार, दुमका
--पवन कुमार रजक, आइआरबी-2
-शन्नू उरांव, सब-इंस्पेक्टर, एसआइएसएफ
--अजीत किंडो, जैप-4
--इंद्रदेव राम, रामगढ़
--संचमान तामंग, सब-इंस्पेक्टर, रांची
-बबन कुमार, जैप-5
--राजेश कुमार, हजारीबाग
--मिहिर महतो, जैप-5
--मनीष लांबा, जैप-वन
--पूर्ण बहादुर सिंह, जैप-वन
--संजीव कुमार गुप्ता, सरायकेला
--कमोज पुन, सब-इंस्पेक्टर, जैप-वन
--दिलीप गुरुंग, हवलदार, जैप-चार
--विवेक लाल, बोकारो