कर्नल, मेजर समेत छह सैन्यकर्मियो की आजीवन कारावास की सजा निलंबित
मच्छल मुठभेड़ कांड 29 अप्रैल 2010 को हुआ था। बताया गया था कि एलओसी पर मुठभेड़ मे तीन विदेशी आतंकी शहजाद अहमद खान, रियाज अहमद लोन और मुहम्मद शफी मारे गए है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो । सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2014 मे जनरल कोर्ट मार्शल द्वारा मच्छल मुठभेड़ मामले मे लिप्त एक कर्नल और एक मेजर समेत छह सैन्यकर्मियो को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को फिलहाल निलंबित कर दिया है।
मच्छल मुठभेड़ कांड 29 अप्रैल 2010 को हुआ था। बताया गया था कि एलओसी पर मुठभेड़ मे तीन विदेशी आतंकी शहजाद अहमद खान, रियाज अहमद लोन और मुहम्मद शफी मारे गए है। बाद मे लोगो ने कहा कि मारे गए तीनो स्थानीय ग्रामीण है और मुठभेड़ फर्जी है। इसका भारी विरोध हुआ और पुलिस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू की थी। सेना ने भी इस मामले की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की। सेना की 68 माउंटेन बिग्रेड के कमांडर ब्रिगेडियर सीएस सांगा द्वारा की गई कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आधार पर संबंधित सैन्यकर्मियो के कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया दिसंबर 2013 को शुरू की थी।
ब्रिगेडियर दीपक मेहरा ने कोर्ट मार्शल की कार्रवाई का संचालन करते हुए चार राजपूत रेजिमेट के कर्नल डीके पठानिया, मेजर उपेद्र सिंह, हवालदार देवेद्र कुमार, लांसनायक लख्मी, लांसनायक अरुण कुमार समेत छह सैन्यकर्मियो को जनरल कोर्ट मार्शल मे दोषी ठहराते हुए उन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पिछले वर्ष सात सितंबर को सैन्य प्रशासन ने दोषी सैन्यकर्मियो की सजा का अनुमोदन किया था। इसके बाद कर्नल पठानिया और मेजर उपेद्र सिंह समेत पांच सैन्यकर्मियों ने सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल मे जनरल कोर्ट मार्शल द्वारा सुनाए गए फैसले को चुनौती दी थी।
ट्रिब्यूनल मे सैन्यकर्मियो की पैरवी करने वाले मेजर (सेवानिवृला) आनंद कुमार ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने आजीवन कारावास को निलंबित कर दिया है और मेरे मुवक्किल अगले एक दो दिन मे जेल से बाहर आ जाएंगे। यह हमारी एक बड़ी जीत है। उन्होने कहा कि जम्मू-कश्मीर मे उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व मे सलाासीन तत्कालीन सरकार के दबाब मे केद्र आ गया था, इसलिए यह सब हो गया। कोर्ट मार्शल में सुनवाई ठीक तरीके से नही हुई थी। उन्होने कहा कि हमने सजा को निलंबित किए जाने पर जोर देते हुए कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया के दौरान की बातो की उपेक्षा का जिक्र किया। मारे गए तीन लोगो मे से सिर्फ दो के ही डीएनए नमूने उनके परिजनो के डीएनए से मिलाए गए हैं। इसके अलावा पहली एफआइआर सिर्फ दो लोगो के लापता होने के संदर्भ मे दर्ज कराई गई थी।
सेना के आग्रह पर हुई थी कोर्ट मार्शल की कार्रवाई :
वर्ष 2010 मे वादी मे हुए ¨हसक प्रदर्शनो मे मच्छल मुठभेड़ ने आग मे घी का काम किया था। पुलिस ने इस मामले मे आठ सैन्यकर्मियो समेत 11 लोगो को आरोपी बनाकर सीजेएम सोपोर की अदालत मे जून 2010 को चालान पेश किया था, लेकिन अदालत ने सेना के आग्रह पर आरोपी सैन्यकर्मियो के खिलाफ जनरल कोर्ट मार्शल की कारवाई की अनुमति दी थी। कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया 23 दिसंबर 2013 को शुरू हुई जो सितंबर 2014 मे पूरी हुई।
यह था आरोप :
सेना के साथ कथित तौर पर काम करने वाले दो नागरिको बशीर अहमद लोन और अब्दुल हमीद बट ने टेरीटोरियल आर्मी के जवान अब्बास व 4 राजपूत रेजिमेट के तत्कालीन कमान अधिकारी के साथ मिलकर एक साजिश रची। इसमे बशीर, अब्दुल और अब्बास ने रफियाबाद के नादिहाल इलाके के रहने वाले तीन बेरोजगार युवको शहजाद अहमद, मुहम्मद शफी लोन और रियाज अहमद को सेना मे नौकरी दिलाने का झांसा देकर बुलाया। इसके बाद उन्होने इन तीनो युवको को 50-50 हजार के इनाम के बदले कर्नल पठानिया के अधीनस्थ अधिकारियो को 27 अप्रैल 2014 को सौप दिया। इस बीच, 29 अप्रैल को इन युवको के परिजनो ने निकटवर्ती पुलिस स्टेशन मे उनके लापता होने की रिपोर्ट लिखवा दी। इसके एक दिन बाद सेना ने मच्छल मे तीन घुसपैठियो को मार गिराने का दावा किया, लेकिन जब उनकी तस्वीर अखबार मे छपी तो मारे गए तीनो विदेशी आतंकी नादिहाल के लापता युवक निकले थे।