अदभुत है क्षीर भवानी मंदिर, इस बार क्षीर भवानी मेले मे शामिल नही होगे कश्मीरी पंडित
वार्षिक मेले व विशेष पूजा मे मां क्षीर भवानी के दर्शनो के लिए जम्मू से ही नही बल्कि देश-विदेश मे बसे पंडित समुदाय के लोग आते है।
जम्मू, [ जागरण संवाददाता]। अमरनाथ गुफा के बाद कश्मीर के क्षीर भवानी मंदिर की मान्यता सबसे ज्यादा है। जो लोग अमरनाथ नहीं जा पाते हैं वह यहां आकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रर्थना करते हैं। क्षीर भवानी मंदिर में हर वर्ष बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। देश भर के साथ विदेशों से आए हजारों भक्त माता के दर्शन करते हैं ।
श्रीनगर से करीब 25 किलोमीटर दूर गांदरबल जिले के तुल्मुल्ला गांव में मां भवानी के जन्मदिन पर भक्तों बहुत बड़ा मेला लगता है। कश्मीरी पंडितों में मां भवानी को कुल देवी माना जाता है।
इस दिन देश विदेश से भक्त यहां आकार माता के जल स्वरूप की पूजा करते हैं। जम्मू से आए भक्त ने बताया कि वह करीब 15 वर्षों के बाद कश्मीर आए हैं। उन्हें यहां आकर काफी शांति मिली। उन्होंने कश्मीर की खुशहाली के लिए प्रार्थना की और मां से दुआ मांगी कि जिस भाईचारे के लिए कश्मीर माना जाता रहा है वह हमेशा कायम रहे।
एक और भक्त जो दिल्ली से आई थी, का कहना था कि वह पहली बार कश्मीर आई हैं और उन्हें यहां आकर काफी अच्छा लगा। उन्होंने मां से यही मांगा कि कश्मीर में शांति बनी रहे और वह दुबारा यहां आकर रहे।माता क्षीर भवानी के मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर हनुमान जी माता को जल स्वरूप में अपने कमंडल में लाए थे। यह भी कहा जाता है कि जिस दिन इस जल कुंड का पता चला वह ज्येष्ट अष्टमी का दिन था। इसलिए हर साल इसी दिन मेला लगता है।माता को प्रसन्न करने के लिए दूध और शक्कर में पकाए चावलों का भोग चढ़ाने के साथ-साथ पूजा अर्चना और हवन किया जाता है।
भक्तों का मानना है कि माता आज भी इस जल कुंड में वास करती हैं।यह जल कुंड वक्त के साथ साथ रंग बदलता रहता है, जिससे भक्तों को अच्छे और बुरे समय का ध्यान हो जाता है। यह� कुंड लाखों लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। एक भक्त विजय कॉल ने बताया कि 90 के दशक में जब कश्मीर में हालात खराब थे तो उस समय जल कुंड का रंग काला हो गया था जो बुरे समय का प्रतीक है।यह जल कुंड� वक्त के साथ साथ रंग बदलता रहता है, जिससे भक्तों को अच्छे और बुरे समय का ध्यान हो जाता है। यह कुंड लाखों लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
एक भक्त ने बताया कि 90 के दशक में जब कश्मीर में हालात खराब थे तो उस समय जल कुंड का रंग काला हो गया था जो बुरे समय का प्रतीक है। उन्होंने यह भी बताया कि जब रंग हरा या नीला हो तो तब समय अच्छा होता है। गौरतलब यह है कि इस मंदिर का निर्माण 1912 में राजा हरि सिंह ने करवाया था।
इस मंदिर की खास बात यहां का जल कुंड है, जिसके साथ लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। क्षीर भवानी मंदिर की खासियत यह भी है कि आज भी इस स्थान पर सदियों से चला आ रहा कश्मीरी भाईचारा जिंदा है। मंदिर में चढ़ने वाली सामग्री इलाके के स्थानीय लोग बेचते हैं जो भाईचारे का एक बहुत बड़ा उदाहरण है।
क्षीर भवानी मेले मे शामिल नही होगे कश्मीरी पंडित
इस बार विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडित समुदाय ने जिला गांदरबल के गांव तुलमुल्ला मे लगने वाले वार्षिक क्षीर भवानी मेले मे शामिल न होने की घोषणा की है। पंडितो ने कहा कि 1990 के बाद यह पहली बार होगा जब समुदाय के ज्यादातर लोग मां के दर्शन करने से वंचित रह जाएंगे, क्योकि घाटी के मौजूदा हालात यात्रा के लिए सुरक्षित नही है।
प्रशासन पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था का दावा कर रहा है परंतु दो दिनो के दौरान मां क्षीर भवानी के आसपास पत्थरबाजी की घटनाएं पेश आई है, जो सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती है।
यह घोषणा कश्मीर पंडित समुदाय ने डिसपलेस्ड कश्मीरी पंडित फोरम जगटी के प्रधान टीएन भट्ट की अध्यक्षता मे जगटी टाउनशिप मे हुई बैठक मे की गई। समुदाय ने कहा कि सरकार पंडितो की समस्याओ को लेकर गंभीर नही है।
घाटी मे दिन-प्रतिदिन हालात खराब होते जा रहे है। इस दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस मे कार्यरत कश्मीरी पंडित युवक समीर भट्ट के लापता होने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अभी तक जिला प्रशासन उसका सुराग लगाने मे विफल साबित हुआ है। इतना ही नही प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत जो पंडित समुदाय के युवक घाटी मे नौकरी कर रहे है, वे भी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे है।
भट्ट ने कहा कि वार्षिक मेले व विशेष पूजा मे मां क्षीर भवानी के दर्शनो के लिए जम्मू से ही नही बल्कि देश-विदेश मे बसे पंडित समुदाय के लोग आते है, लेकिन इस बार मेले मे समुदाय की उतनी भागीदारी नही रहेगी। भट्ट ने कहा कि वह समुदाय के अन्य संगठनो से भी अपील करेगे कि वे यात्रा का बहिष्कार कर सरकार के उनके प्रति उदासीन रवैये के खिलाफ रोष व्यक्त करे। समुदाय की समस्याओ को हल करने के लिए अभी तक प्रशासन की ओर से कोई गंभीरता नही दिखाई गई है।
विस्थापित शिविरो मे रह रहा पंडित समुदाय मूलभूत सुविधाओ के अभाव मे जी रहा है। फ्लैट की मरम्मत नही की गई। बिजली-पानी की भीषण किल्लत बनी हुई है, स्वास्थ्य सुविधाएं नाममात्र है।
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