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डीएसपी की नृशंस हत्या के बाद राज्य सरकार की लचर नीति पर पुलिस संगठन में रोष

हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा या राष्ट्रविरोधी भीड़ की हिफाजत की नीति को बदल देना चाहिए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 24 Jun 2017 04:18 PM (IST)Updated: Sat, 24 Jun 2017 04:19 PM (IST)
डीएसपी की नृशंस हत्या के बाद राज्य सरकार की लचर नीति पर पुलिस संगठन में रोष
डीएसपी की नृशंस हत्या के बाद राज्य सरकार की लचर नीति पर पुलिस संगठन में रोष

श्रीनगर, [राज्य ब्यूरो]। डीएसपी की नृशंस हत्या के बाद राज्य सरकार की आतंकियों व अलगाववादियों के प्रति लचर नीति को लेकर पुलिस संगठन में रोष पैदा हो गया है। कई पुलिस अधिकारियों ने अलगाववादियों की सरकारी सुरक्षा वापस लेने पर जोर देते हुए डीएसपी की मौत के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

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जिला पुलिस लाइन में शहीद डीएसपी मुहम्मद अयूब को श्रद्घांजलि अर्पित करने के बाद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि यहां पता नहीं ऐसे कितने ताबूत हमें देखने को मिलेंगे। इस साल अब तक हमारे डेढ़ दर्जन से ज्यादा साथी शहीद हो चुके हैं। कई साथियों के परिजनों पर आतंकी हमला कर चुके हैं। इसके लिए आतंकी नहीं बल्कि हमारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं।

इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि हम छोटे मुलाजिम हैं, लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर सरकार चाहती क्या है। अगर हुर्रियत नेता मुल्क के दुश्मन हैं तो फिर उनकी हिफाजत की जिम्मेदारी हमारी क्यों? हमें कहा जाता है कि संयम बरतो, पत्थर खाओ, गोली खाओ, यह कहां का इंसाफ है।डीएसपी रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि अगर कश्मीर में कोई सॉफ्ट टारगेट है तो वह पुलिसकर्मी और उनके परिजन हैं। शरारती तत्व पुलिस के लोगों को निहत्था या अकेला देखते ही निशाना बनाते हैं। सरकार को भी यहां के हालात पता हैं। उसके बाद पुलिसकर्मियों विशेषकर सुरक्षा विंग से जुड़े लोगों को ऐसी जगह बिना हथियारों के ड्यूटी के लिए भेजा जाता है, जहां वह हमेशा शरारती तत्वों के निशाने पर रहते हैं।

सभी को पता है कि मस्जिदों और दरगाहों पर किस तरह का माहौल होता है। उसके बाद पुलिस को बिना पर्याप्त सुरक्षा वहां बलि का बकरा बनाकर तैनात कर दिया जाता है। हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा या राष्ट्रविरोधी भीड़ की हिफाजत की नीति को बदल देना चाहिए।कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों का संचालन कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमेशा संयम से काम नहीं चलता। संयम को तोड़ने की अनुमति राज्य सरकार को देनी चाहिए। आतंकियों और अलगाववादियों के हौसले पुलिस के हाथ बांधे जाने के बाद ही बढ़े हैं। जिस दिन पुलिस को अलगाववादियों, आतंकियों और उनके समर्थकों के प्रति प्रो-एक्टिव एप्रोच की छूट मिलेगी, उस दिन पुलिसकर्मियों व उनके परिजनों पर हमले की घटनाएं बंद हो जाएंगी।

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