यह कैसी आजादी है और कौन सा जिहाद?
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : अलगाववादियों का गढ़ कहलाने वाले डाउन-टाउन के खानयार में शुक्रवार सुबह सन्नाट
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : अलगाववादियों का गढ़ कहलाने वाले डाउन-टाउन के खानयार में शुक्रवार सुबह सन्नाटा पसरा हुआ था। इस सन्नाटे को अगर कोई तोड़ रहा था तो मस्जिद के पास एक मकान में रोती बिलखती औरतों के सवाल। छाती पीट रही महिलाएं दिलासा देने आ रहे लोगों से बार-बार पूछ रहीं थीं कि यह कौन सी आजादी है? यह कौन सा इस्लाम और जिहाद है, जो मासूमों को शब-ए-कद्र की रात को कत्ल करने की इजाजत देता है।
खानयार में नौपुरा स्थित यह मकान था शहीद डीएसपी मोहम्मद अयूब का, जिन्हें वीरवार आधी रात के बाद जामिया मस्जिद के बाहर इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगाती भीड़ ने मार डाला था। मकान के भीतर और बाहर खड़े लोग सब इस घटना से स्तब्ध थे।
दिवंगत के भतीजे शिराज पंडित ने कहा कि शब-ए-कद्र की रात को हम लोग खुदा से गुनाहों की माफी मांगते हैं और यहां मेरे चाचा को मस्जिद के बाहर ही शहीद कर दिया गया। वहीं पास खड़े एक बुजुर्ग ने कहा, पता नहीं कश्मीर को क्या हो गया, मस्जिद के बाहर ही एक मुबारक रात को जब हम अल्लाह से बरकतें लेते हैं, एक मासूम को बिना किसी कसूर के जानवरों की तरह मार डाला गया। ऐसी आजादी हमें नहीं चाहिए।
घर के बरामदे में दिवंगत की बहन रोते हुए बोली, 'आजादी का नारा देने वाले सैयद अली शाह गिलानी अब चुप क्यों हैं।' यह कौन सी आजादी है, जो मेरे भाई को इस तरह कत्ल किया गया। मेरा भाई मुखबिर नहीं था।'
दिवंगत की पत्नी को दिलासा दे रही उसकी भाभी ने कहा कि उसे किसी आतंकी ने नहीं मारा। उस मासूम को भीड़ ने मारा डाला। उसने मीरवाइज और गिलानी का नाम लेते हुए कहा कि हमारे बच्चे अनाथ हो गए हैं। भीड़ ने सिर्फ एक कत्ल नहीं किया है, उसने तीन और लोगों को जीते जी मार डाला है। वह पुलिस में जरूर था, लेकिन उसे इसका कोई गुमान नहीं था। वह बहुत सादा था, खुदा से बहुत डरता था। अपने जूते भी खुद ही पालिश करता था।
दिवंगत के पड़ोसी सज्जाद मदनी ने कहा कि हमें सुबह पता चला। अयूब पूरे मोहल्ले का मददगार था। अगर वह जामिया में ड्यूटी के लिए गया था तो पुलिस को उसकी हिफाजत का बंदोबस्त करना चाहिए था। उसके पीएसओ भी उसे छोड़कर भाग गए।
शहीद के बड़े भाई फारूक अहमद ने कहा कि कल शाम को ही उसे फोन पर जामिया मस्जिद में ड्यूटी पर पहुंचने के लिए कहा गया था। हमें तो आधी रात के बाद पता चला कि जामिया में कुछ हादसा हो गया है। एक फोन आया था और फोन करने वाले ने अयूब के बारे में पूछा कि वह घर पहुंचा या नहीं। हमने कहा नहीं। इसके बाद हम घबरा गए। हमने उसके मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन स्विच ऑफ था। फिर एसपी नार्थ सज्जाद का फोन आया और उसने कहा कि अयूब जख्मी हो गया है और इस समय पुलिस कंट्राल रूप में है। लेकिन तब तक उसकी जान चली गई थी।
1990 में शुरू किया था करियर :
शहीद डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित ने 1990 में बतौर सब इंस्पेक्टर पुलिस में अपना करियर शुरू किया था। वह कुछ साल पहले ही डीएसपी के पद पर पदोन्नत हुए थे और राज्य पुलिस के सिक्योरिटी विंग में तैनात थे। अक्सर उनकी ड्यूटी मस्जिद में ही लग रही थी और स्थानीय लोग भी उन्हें अच्छी तरह जानते थे।
-------------------------