पंद्रह माह रहा था कश्मीर में लखवी का बेटा कासिम
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : डेविड हेडली ने बेशक लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी के पुत्र कासिम उर्फ बाशी
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : डेविड हेडली ने बेशक लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी के पुत्र कासिम उर्फ बाशी के कश्मीर में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने की पुष्टि की है। राज्य में सक्रिय सुरक्षा एजेंसियां के लिए यह खुलासा कोई नया नहीं है, क्योंकि उन्हें कासिम की मौत से पहले पता चल चुका था कि वह कौन था। वह अक्टूबर 2007 को मारा गया था। लखवी लश्कर के उन चार प्रमुख कमांडरों में एक है जिसने मुंबई हमले की साजिश को रचा था। वह पाकिस्तान की जेल में है। लखवी का बेटा कासिम उर्फ बाशी जुलाई 2006 में गुलाम कश्मीर से कश्मीर में दाखिल हुआ था। उसे लश्कर में कोई ओहदा नहीं दिया गया था। उसके साथ हमेशा लश्कर के तीन से चार कमांडर रहते थे। उसके साथ ऐसे व्यवहार किया जाता था जैसे वह कोई बड़ा कमांडर हो। इसके आधार पर ही सुरक्षाबलों को पता चला था कि बांडीपोर में ठिकाना बनाने वाला कासिम लश्कर की कोई बड़ी हस्ती है। जिस समय कासिम कश्मीर में दाखिल हुआ था, उस समय उत्तरी कश्मीर ही लश्कर का सबसे बड़ा गढ़ था। श्रीनगर में लश्कर द्वारा हमले के लिए आत्मघाती दस्ते भेजे जाते थे और वहीं से कश्मीर में लश्कर की कारवाईयों की योजना तैयार होती थी। कासिम ने उस समय लश्कर के सबसे कुख्यात आतंकी चार्ली-1 उर्फ सेरा उर्फ बिलाल उर्फ सल्लाहुदीन की जगह ली थी। कासिम के आने के बाद ही चार्ली-1 वापस पाकिस्तान गया था। तत्कालीन लश्कर का डिवीजनल कमांडर मूसा ऊर्फ अबु वफा साये की तरह कासिम के साथ रहता था। लखवी का बेटा कासिम कई बार सुरक्षाबलों की घेराबंदी में फंसा। जब भी वह किसी जगह फंसता तो लश्कर के आतंकी उसे वहां से सुरक्षित निकालने के लिए हर संभव प्रयास करते थे। नादिहाल गांव में वह चारों तरफ से घिर गया था, लेकिन लश्कर के आतंकियों ने उसे सुरक्षाबलों से बचाने के लिए जबरदस्त फायरिंग की थी। सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाने से पहले वह एक बार अरागाम-बांडीपोर में हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकियों के हमले मे जख्मी हो गया था। हरकत के आतंकियों ने कासिम व उसके साथियों को सेना के जवान समझकर फायरिंग कर दी थी। फायरिंग में उसकी टांग पर गोली लगी थी। लश्कर के आतंकियों ने उसे बांडीपोर के जंगलों में ही बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई। हर दो से तीन दिन बाद उसका ठिकाना बदल दिया जाता रहा था। लगभग 15 माह तक वह सुरक्षाबलों से बचता रहा। लेकिन तीन अक्टूबर 2007 की शाम को सुरक्षाबलों को अपने तंत्र से पता चला कि बांडीपोर के गमरु गांव में कासिम और अबु वफा अपने किसी संपर्क सूत्र के पास आए हुए हैं। तीन अक्टूबर की रात को सुरक्षाबलों ने उनके ठिकाने की घेराबंदी कर ली । इसके बाद वहां हुई भीषण मुठभेड़ में अबु वफा उर्फ मूसा कुछ ही देर में मारा गया लेकिन कासिम अगली सुबह दस बजे तक लड़ता रहा और मारा गया।