यहां कोई राष्ट्रविरोधी नहीं : उमर
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानमंडल में दलगत मतभेदों के बावजूद कोई भी राष्ट्र विरोधी नहीं है। हमने इस देश और राज्य की मजबूती के लिए कुर्बानियां दी हैं। उमर ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद किए जाने पर एतराज जताते हुए कहा कि हमें बताएं कि बातचीत के अलावा दूसरा कौन सा रास्ता है जो पाकिस्तान के साथ दोस्ती और कश्मीर समस्या के समाधान की तरफ जाता है। उमर ने कहा, 'हमने बातचीत की वकालत की तो राष्ट्र विरोधी हो गए। अगर हमने जंग मांगी होती तो राष्ट्र भक्त होते?'
11वीं विधानसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन सदन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य विधान परिषद में भारत-पाक के बीच वार्ता संबंधी प्रस्ताव पारित होने पर एक मीडिया हाउस द्वारा नेकां व राज्य विधानमंडल में कथित तौर पर राष्ट्र विरोधी तत्वों की पैठ की टिप्पणी किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस आदमी ने कभी अपनी जिंदगी को लोकतंत्र और देश की खातिर खतरे में नहीं डाला, उसे कोई हक नहीं कि वह एक स्टूडियो में बैठकर जम्मू-कश्मीर के लोगों के चुने हुए नुमाइंदों और राज्य विधानमंडल की विश्वसनीयता पर नकारात्मक टिप्पणी करे।
उमर ने कहा कि यहां कई लोग धारा 370 के हक में हैं, कई उसके खिलाफ हैं। कोई आटोनामी की बात करता है तो कोई सेल्फ रूल की, लेकिन कोई भी यहां राष्ट्र विरोधी नहीं है। कोई भी यहां मुल्क के साथ खिलवाड़ नहीं करता और न करेगा। हम यहां जब भी शपथ लेते हैं तो देश की एकता अखंडता और संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं। उन्होंने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के आठ हजार कार्यकर्ता यहां लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए। पूरे देश में ऐसी कौन सी दूसरी सियासी जमात है। सुरक्षा लेना हमारी मजबूरी है। हमारी ही विधानसभा पर हमला हुआ था और तीस लोग मारे गए थे। किसी दूसरे राज्य में ऐसे हालात कभी नहीं रहे हैं। हमने बातचीत का पक्ष लिया है और हम राष्ट्रविरोधी हो गए?
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब संसद पर हमला हुआ तो उस समय तत्कालीन केंद्रीय सरकार ने पाकिस्तान के साथ संवाद बंद करते हुए बीस लोगों की सूची तैयार की। कहा गया कि हमें ये लोग सौंपे जाएं तो बातचीत होगी। पाकिस्तान ने एक भी आदमी नहीं सौंपा, तो क्या बातचीत शुरू नहीं हुई थी। मुंबई हमले के बाद भारत ने फिर कहा कि हमें इस साजिश के सूत्रधारों के खिलाफ कार्रवाई चाहिए। एक अजमल कसाब के अलावा किसी दूसरे के खिलाफ क्या किया, कुछ नहीं हुआ तो क्या फिर बातचीत नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि अब अलगाववादियों की पाकिस्तानी उच्चायुक्त के साथ चाय बैठक के आधार पर बातचीत की प्रक्रिया को अगर रोका जाता है तो क्या औचित्य है। अलगाववादियों की पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों व पाकिस्तानी नेताओं के साथ चाय बैठकों का सिलसिला पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दौर से ही जारी है। इसमें नया क्या था।