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यज्ञोपवीत धारण कर सन्मार्ग पर चलने का लिया प्रण

जागरण संवाददाता, राजौरी : महामंडलेश्वर 1008 राजगुरु स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी की अध्यक्षता में

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 01:00 AM (IST)
यज्ञोपवीत धारण कर सन्मार्ग पर चलने का लिया प्रण
यज्ञोपवीत धारण कर सन्मार्ग पर चलने का लिया प्रण

जागरण संवाददाता, राजौरी : महामंडलेश्वर 1008 राजगुरु स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी की अध्यक्षता में ज्ञान गंगा आश्रम सुंदरबनी में अक्षय तृतीया के अवसर पर सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया गया। युवाओं और बालकों ने बड़ी संख्या में यज्ञोपवीत धारण किया।

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इस मौके पर अपने प्रवचनों से संगत को निहाल करते हुए स्वामी जी ने कहा कि भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग व त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। स्वामी जी ने कहा कि यज्ञोपवीत संस्कार धारण करने वाले बच्चों को धर्म का पालन करना चाहिए। इससे दिव्य शक्तियों की भी प्राप्ति होती है। बच्चों को सही मार्ग पर चलने और धर्म का ज्ञान देने के लिए यज्ञोपवीत संस्कार अहम है। इससे बच्चा गलत संगत में नहीं पड़ता और हमेशा धर्म का पालन करने के साथ लोगों की सेवा में जुटा रहता है। इसलिए यज्ञोपवित संस्कार धारण करने के बाद नियमों का पालन करना जरूरी है।

इस मौके पर राजौरी, पुंछ, जम्मू, ऊधमपुर व कठुआ क्षेत्रों से लोग अपने बच्चों को यज्ञोपवीत संस्कार करवाने के लिए आश्रम लाए थे। अंत में हवन यज्ञ का आयोजन किया गया और पूर्णाहुति के साथ यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।

यज्ञोपवीत धारण करने के बाद इन नियमों का पालन करना चाहिए

-ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर सोना चाहिए

-दंड धारण करना चाहिए

-गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए

-झूठ नहीं बोलना चाहिए

-धर्म शास्त्र के उपदेश का पालन करना चाहिए

-मांस व मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए

-नहाते समय जल नहीं उछालना चाहिए

-सूर्य को उदय होते और स्त होते नहीं देखना चाहिए

-दूसरों की ¨नदा नहीं करनी चाहिए

-गुरु सेवा में हमेशा तत्पर रहना चाहिए

-अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिए

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